अनाथ बच्चों को दो प्यार-सम्मान ताकि खुशियों से भर जाय उनका जीवन
बचपन की पीड़ा
मित्रों, एक कहानी जो बचपन की पीड़ा को बयां कर रही है। जो दर्द बचपन में पहुँचता हैं वह उम्र भर रहता है। अनाथ बच्चों को इतना प्यार और सम्मान दो कि उनका जीवन खुशियों से भर जाए।
आशा नाम की एक लड़की थी। हँसता-खेलता परिवार था। घर मे माँ, पिताजी और एक छोटा भाई था। समय ठीक से व्यतीत हो रहा था। माँ-पिताजी के अरमान थे बच्चे बड़े होकर पढ़-लिखकर काबिल बने। लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था। अचानक माँ बीमार हुई और स्वर्ग सिधार गई। सब कुछ बदल गया। बच्चों की ठीक से परवरिश नहीं हो पाई। भाई भी माँ के पास चला गया। पिताजी अकेले पड़ गए तो घर वालों ने उनकी दूसरी शादी करवा दी।
आशा को माँ का प्यार नसीब नहीं हुआ और सौतेलापन हावी हो गया। पिताजी ने उसे शहर भेज दिया। दूर वहाँ रिश्तेदार के घर बेटी कुछ पढ़ लिख पायेगी।लेकिन किस्मत का खेल कुछ और ही था। वहाँ उसका बचपन सिमट कर रह गया। उसे पढने को तो नहीं मिला लेकिन उनके बच्चों की देखभाल करनी पड़ती थी।समय बिताता गया उन बच्चों के परवरिस में मानो आशा का बचपन लुप्त हो गया। बच्चे बड़े होने लगे। आशा ने हिम्मत नहीं हारी। चोरी छुपे जब कोई नहीं होता तो उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उसे जो भी पढ़ने में परेशानी थी वह बच्चों से पूछ लेती थी। किस्मत से उसको एक आन्टी मिली जिसे उसका डूबता बचपन नहीं देखा गया। उन्होंने आशा की पढ़ाई में पूरी मदद की। घर वालो से कहकर दसवीं का फार्म भरवाया और फिर बारहवीं का। देखते ही देखते वह अपने मकसद मे आगे बढ़कर आर्मी में भर्ती हो गयी। दुःखो का काला साया मानो मिट गया। लेकिन वो प्यारा हँसता-खेलता बचपन आज भी आशा को झकझोर कर रख देता है। यही कारण था की आशा ने शादी नहीं की और एक अनाथ बच्चे को गोद ले लिया। आशा उसके बचपन को सँवारने में लग गयी। उसको पलता बड़ा होते देखकर उसका जीवन सार्थक हो गया। उसी में अपना बचपन को देखने लगी। बचपन की कड़वी यादें ही उसे प्रेरित करती रहीं।मानो आशा ने अपनी पूरी जिंदगी खुशियों से जी ली।
जब किसी भी बच्चे की माँ का साया उसके सिर से उठ जाता है तो बच्चे का अस्तित्व कठनाईयों के कागार में आ जाता है। उस पीड़ा को मैंने भी स्वयं महसूस किया है।
“हर किसी को सुखद बचपन नहीं मिलता है।
ज़िन्दगी मिलती है ,मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता है।
~कविता बिष्ट
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देहरादून