ईद मुबारक…आह दर्द से मारिया तड़प उठी

मारिया और सुलेमान एक सफर के साथी थे। जगह-जगह जीनिया के फूल खिले उस जंगल में शाम के वक्त दोनों एक घाटी पार कर रहे थे। काँटों से बचाने के लिए मारिया ने अपना लंबा गुलाबी गाउन पैरों से थोड़ा ऊपर घुटनों तक खींच लिया। सुलेमान की नजर मारिया की पिंडलियों पर पड़ी। दूधिया,माँसल आकर्षण उसकी निगाहों को चुम्बक की तरह अपनी ओर खींचना चाहता था। प्रेमी था वह,शिकारी तो नहीं!इसलिए आँखें इधर-उधर मोड़कर मारिया को सावधानी से चलने की ताकीद़ करने लगा। मगर काँटों में पास सुलेमान वाला सब्र न था । वो उन फूल से पाँवो की कदमपोशी करके ही दम लेना चाहते थे। पलक झपकते ही बेर की झाड़ी के एक तीखे काँटे ने मारिया की पिंडली बेध दी।
आह! दर्द से मारिया तड़प उठी। सुलेमान ने नीचे झुक अपना हाथ मारिया के जख़्म पर रख दिया। कुछ देर के लिए पाँव उसकी मुट्ठी में कैद हो गया। लेकिन लहू तब भी अंगुलियों के बीच से रिस-रिसकर हथेली लाल करने लगा। बीच-बीच में उठती सिसकियों से सुलेमान की नजर मारिया के चेहरे पर ठहर गई। रक्त सा लाल कुछ उसके सफेद गालों को भी गुलाबी कर रहा था। ये सुलेमान की छुअन का असर था शायद। कुछ सोचकर उसने धीरे से अपना हाथ मारिया के जख़्म से परे हटा लिया । और अपनी जेब से रुमाल निकालकर पट्टी की तरह मोड़ उसके पाँव में कसकर बाँध दिया। खून रुक जाने की राह देखते कुछ देर यूं ही बैठ अब मारिया खड़ी हो गयी। घर लौटने की चिंता से जल्दी – जल्दी कदम बढ़ाने की चाह में दुखते पाँव ने मारिया की चाल बेढ़ंगी कर दी । सुलेमान को ये रास न आया। उसने मारिया का सिर अपने कंधे पर रख लिया। और हाथ से कमर को सहारा दे धीरे-धीरे चल रही मारिया को उसके घर तक पंहुचा आया। सीढ़ियों चढ़ती हुई मारिया ने अहसानमंद आँखों से सुलेमान को विदा कहा। अब उसे अपना जख़्म साफ कर उस पर कोई मरहम लगा लेना चाहिए था । लेकिन उसने सबसे पहले सुलेमान का बाँधा रुमाल धोया । उसे तार पर सूखने छोड़ अब अपने पैर पर दवाई लगाई। उधर हवा में सूखता रुमाल मारिया के दिल को मुहब्बत की रेशमी चादर में लपेटता सा लहरा रहा था। इधर कल फिर सुलेमान से मिलने की चाहत में मारिया का जख़्म दवा का असर दुगुना करवा लेना चाहता था। सुलेमान का रुमाल तह कर उसने अपने सिरहाने रख दिया। अगली शाम ही वह बाजार में थी अपने चारागर के लिए रुमाल का एक पूरा पैकेट खरीदने। बाजार की बढ़ी हुई रौनक से उसे पता चला कि कल ईद है। उसने संदेश भेजा ‘कल शाम जरूर मिलने आना सुलेमान’! मारिया को देखे बगैर कहाँ उसका भी त्यौहार मनता था । जीनिया के फूलों वाली तलहटी में दोनों फिर आमने -सामने थे । मारिया ने रुमाल का पैकेट सुलेमान को थमा दिया।
‘ये ईद का तोहफा है तुम्हारे लिए’। रूमाल पर रेशमी धागे से कढ़ा अपना नाम पढ़कर सुलेमान खिल गया। वह मारिया की तरफ एक कदम आगे बढ़ गया। लंबी रेशमी झुकी हुई पलकों के पीछे से भी मारिया ने देख लिया कि सुलेमान इस वक्त उसके बेहद करीब है। चाँद सा चेहरा हाथों में ले उसके आशिक ने अपने गीले लब मारिया के माथे पर रख दिये। शर्म से सकुचायी गले लगती मारिया ने सुलेमान से तब फुसफुसा कर कहा-ईद मुबारक !
प्रतिभा की कलम से