काव्य के तो प्राण ही हैं छन्द मान लीजिये
घनाक्षरी
आखर-आखर मंत्र आहुति से गढ़े जब
शब्दों ने आकार लिया बंध मान लीजिये
शब्द-शब्द साधना भी नियम से होती रहे
रचेगा सुकाव्य मकरंद मान लीजिये
कुसुम से गीत खिले मन को उल्लास मिले
सृजन हुआ है अभी चंद मान लीजिये
अवहेलना न सही जायेगी जी नियमों की
काव्य के तो प्राण ही हैं छन्द मान लीजिये
© वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ”
कवि/पत्रकार
14/09/2019
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