जो फूल जहां खिला है वो तुम्हें वहीं समर्पित
एक राजकुमारी थी उसे भगवान बुद्ध की पूजा हेतु जाना था। पूजा-अर्चना में प्रयुक्त होने वाली सभी सामग्री का उपयोग राजकुमारी ने किया किन्तु फूलों का नहीं, उसने बुद्ध को संबोधित करते हुए कहा कि
‘जो फूल जहां खिला है वो तुम्हें वहीं पर समर्पित’ !
ये प्रसंग सुजाता से सम्बंधित है या थाइलैन्ड की
राजकुमारी से ! इसका असमंजस है मुझे। ये शायद एक कविता है पर मैंने कहां पढ़ी और कितने बरस पहले पढ़ी यह भी मुझे याद नहीं !!
बस इसका मतलब भर मुझे याद रहा कि फूल नहीं तोड़ने चाहिए और फिर मैंने कभी फूल तोड़े भी नहीं !! पूजा के लिए भी नहीं।
मेरे जीजाजी ! उन्हें फूल तोड़ना बहुत पसन्द हैं …पूजा के लिए। जब कभी फूलों को उनके कहर से बचाने के लिए मैंने ये प्रसंग सुनाया उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया और वो उच्च स्वर में फूल तोड़ना जायज ठहराते हुए संस्कृत में बोलना शुरू कर देते हैं। ना ! ना ! सुगऩ्ध पुष्पाणि …. और पता नहीं क्या – क्या ?
ऐसी ही एक सर्दियों की शाम पिछले बरस मसूरी से लौटते हुए जब हमारे घर पंहुचे तो रात हो चुकी थी। इसी से शायद फूलों पर नजर न पड़ी पर उन्हें पता तो रहता ही है कि इस मौसम में कितने सारे फूल खिलते हैं यहां। सुबह उन्हें कॉलेज पंहुचना था सो चार बजे उठ गये !! पूजा करनी थी ना उन्हें। कुछ भी हो जाये मगर पूजा किये बगैर उनका दिन शुरू नहीं होता और पूजा भी शानदार !!
लगभग घंटे-डेढ़ घंटे की।
नाश्ता करने के बाद जब वो जाने लगे तो मैं भी गेट तक आयी उन्हें छोड़ने !! हल्का सा उजाला पसर रहा था इसलिए नजर आ रहे थे सारे फूल !! सारे फूल सही सलामत देखकर मैं भर गई आश्चर्य से ! पूछ ही लिया मैंने – ‘पूजा के लिए फूल नहीं तोड़े आपने’ ? अरे नहीं ! इतनी देखभाल करती हो , कितने सुन्दर दिखते हैं खिले हुए ‘ मुझे बुद्धू बना बुद्ध सा मुस्कराये वो। इतने स्नेहासिक्त वचन फूलों के लिए !! हुआ क्या होगा असल में ?…सर्दियों की सुबह में ठंड का असर या ज्ञान की प्राप्ति !
प्रतिभा की कलम से