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बैग की चेन खोली..देखा बैग नोटों से भरा था

और वो पल यादगार बन गया….

एक तो बरसात का मौसम ऊपर से काम के चक्कर में दिनभर की भाग-दौड़… इतनी थकान हो जाती है कि रात को बिस्तर पर लेटते ही सपनों की उस दुनिया में खो जाते हैं जहां सिर्फ शांति है, सुकून है, आज़ादी सी महसूस होती है और बिना किसी तनाव के हर वो सपना पूरा हो जाता है जो खुली आँखों से देखा गया हो।
दरअसल एक दिन की बात है अचानक पैसे कि सख्त जरूरत पड़ गई। और उस दौरान बजट भी काफी गड़बड़ा रखा था तो चिंता कुछ ज्यादा बढ़ गयी थी। घर से लेकर ऑफिस तक काम-काज में ठीक से मन नहीं लग रहा था। क्योंकि जहन में बस एक ही सवाल था पैसे का इंतजाम कैसे होगा?
देर रात ऑफिस का काम निपटाने के बाद लगभग 2 बजे घर जाने की तैयारी थी लेकिन पैसे की चिंता इस कदर थी कि घर जाने का भी दिल नहीं कर रहा था, लग रहा था जहां हूँ वहीं ठहर जाऊं। वैसे तो हर रोज़ एक साथी संग घर आना-जाना होता था। लेकिन उस रोज साथी भी छुट्टी पर था। मन बहलाने को कोई भी साथ नहीं था तो दिमाग में वही सवाल घूमे जा रहा था। कैसे होगा?
रास्ते में यही सोचता हुआ घर की ओर बढ़ रहा था कि मेरी नज़र एक बैग पर पड़ी जिसमें से दो हजार का नोट बाहर लटक रहा था। मैंने उसे देख तो लिया था लेकिन मेरा ध्यान अपने उन सवालों के जवाब ढूंढने में खोया हुआ था। लगभग पांच सौ मीटर आगे बढ़ जाने के बाद मुझे उसका ध्यान आया। मैंने गाड़ी रोकी और सोचने लगा कुछ तो दिखा था! क्या वह पैसे ही थे या नहीं? सोचा वहीं जाकर देख लूं… फिर मन में एक सवाल खड़ा हो गया कि देर रात का वक्त है किसी लुटेरे ने कोई जाल तो नहीं बिछा रखा है? मन में अलग-अलग तरह के विचार दौड़ने लगे। मुझे लग रहा था कि कहीं बैग देखने के चक्कर में खुद न लुट जाऊं। कुछ देर गाड़ी को सड़क किनारे खड़ी कर सोचने लगा। मुझे पैसे की जरूरत तो थी, इसलिए आखिरकार मैंने मन बना ही लिया चाहे जो भी हो एक बार जाकर देख लेता हूं और बैग की ओर बढ़ने लगा। बैग से थोड़ी दूरी पर आकर खड़ा हो गया। एक तो सुनसान सड़क दूर-दूर तक कोई नहीं और गाड़ियाँ भी इतनी तेजी से आ-जा रही थी कि सिर्फ लाइटें चमक रही थी। तो डरना भी वाजिब था। बहुत हिम्मत जुटाने के बाद बैग के पास जा पहुंचा। जैसे ही बैग में लटके दो हजार के नोट को पकड़ना चाह रहा था उसी दौरान एक हवा का झोंका आया और वह उड़कर बहुत दूर चला गया। मैं बस उसे छूते-छूते रह गया। जैसे ही मैंने बैग की चेन खोली में हैरान रह गया! पूरा बैग पैसों से लबालब भरा था। मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि यह सच है। थोड़ी देर तो मैं उनको निहारता ही रहा, मैं बहुत खुश हुआ। फिर यह बात दिमाग में घूमने लगी कि न जाने इतने सारे पैसे किसके होंगे? मैंने सोचा पुलिस को बता देना ही ठीक रहेगा। लेकिन मैंने अपनी जरूरत को पूरी करने के लिए किसी को कुछ न बताना ही सही समझा। मैंने बैग उठाया और तेज रफ्तार से घर की ओर निकल पड़ा। लेकिन मैं घर नहीं गया बल्कि एक सुनसान सी जगह नदी के पास जाकर बैठ गया। वहां मैंने सोचा क्यों न पैसे कि गिनती की जाए। बैग खोला और पैसों को गिनना शुरु कर दिया। नदी की लहरों से उठती बूंदे मेरी ओर तेजी से आ रही थी, जिससे मैं धीरे-धीरे भीगने लगा था। थोड़ी ही देर में पैसे भी भीगने लगे थे। लग रहा था कि नदी की लहरों से उठती ये बूंदे पैसों को पूरा भिगो देगी। फिर मैंने सोचा क्यों न घर जाकर ही पैसों की गिनती करूं (और मन ही मन सोचने लगा मुझे यहां आना ही नहीं चाहिए था)। मैंने बैग की चेन लगाई और बैग उठाने लगा। ग़लती से बैग मेरे हाथ से फिसलकर नदी में जा गिरा, मैं भी उसे पकड़ने के चक्कर में पीछे से कूद पड़ा।अचानक से मेरी नींद खुल गई… मैं बेड से नीचे गिरा पड़ा था। बाहर मौसम बहुत खराब था। तेज़ हवाओं के साथ बारिश हो रही थी। जिसकी बूंदे मेरे बेड के बगल वाली खिड़की से सीधा अंदर आ रही थी। बारिश इतनी तेज थी कि कमरे में भी काफी पानी भर गया था और जिसे मैं नोट समझकर गीन रहा था वह नोटबुक भी तकिए से नीचे गिरकर कमरे में भरे पानी से पूरी तरह भीग गई। उस दिन की बारिस और वह सपना मेरे लिए एक यादगार पल बन गया।

मोहित नौटियाल

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