शिव के हलाहल गटकने की कथा में अब नहीं रहा दम
आज शिवरात्रि है। कुछ मान्यताओं के अनुसार आज शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को जगत कल्याण के लिए अपने कंठ में उतार लिया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार आज शिव, पार्वती संग विवाह बंधन में बंधे थे । शिव की शादी होने वाली बात तो अच्छी है। क्योंकि एक जटाधारी, भस्म लेप करने वाले संन्यासी का किसी के प्रेम में पड़कर गृहस्थ हो जाना वाकई सुखद लगता है। लेकिन, उनका हलाहल गटक जाने वाली कथा में अब दम नहीं ।
आखिर क्या मिला शिव को इस संसार से? उनके परम प्रिय नंदी, सांड के रूप जगह-जगह कूड़े के ढ़ेर पर खड़े होकर पॉलीथीन चबा रहे हैं।
सुन्दर, दूधिया गंगा किस वेग से उतरी थीं कि धरती को तबाही से बचाने के लिए शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में बाँधा था। आज वही गंगा अपना अस्तित्व बचाने के लिए जूझ रही हैं। इंसान उसे हर तरह से शोषित कर रहा है। जगह-जगह लालच के बाँध खड़े हो रहे हैं। गंगा की धाराऐं कहीं नहीं। उनके माथे पर बिठाये चाँद की भी अब खैर कहाँ ? सदियों तक कवियों, शायरों ने महबूबा का चेहरा मान उसे शायरी बनाकर कागज़ पर उतारा। लेकिन अब इंसान के खुद चाँद पर उतर जाने के बाद लगता है कि भारतीय स्त्रियों द्वारा करवा चौथ पर चंद्रदेव को मिलने वाली इज़्ज़त, तरज़ीह भी खतरे में है। भूत और गण भी दिन-रात यातायत के शोर गुल और हर तरफ तेज रोशनी के उजाले से घबराकर आत्महत्या कर बैठे हैं। कहीं तो सुकून हो कि भटकती आत्माओं को रोने की जगह मिल सके। शिव के शरीर पर धारण किये जाने वाले रूपक हों या उनके आसपास रहने वाले जीव-जन्तु, देव, भूत या फिर गण! सभी प्रकृति के पूरक हैं। सहयोगी हैं। इंसान ने इनको कहीं का नहीं छोड़ा तो फिर लगता नहीं, कि हम ही शिव को जहर पिला रहे हैं। फिर यव्रत रखकर कामना किस बात की? कल्याण की? या फिर संहार की! बस एक गुण है, जिसमें शिव के अनुयायियों की संख्या में दिन-दूनी रात चौगुनी उन्नति हो रही है। वो है भाँग पीना।
जी हां, सुट्टेबाजों में ही लोकप्रियता रह गयी हो मानो अब शिव की। लेकिन बरबादी के कश लगाकर शिव को याद करने में कोई सार्थकता नहीं।
जिस तरह कुछ साल पहले केदारनाथ में आयी आपदा को सबने शिव ताँडव मानकर अपने कर्मों पर लीपापोती करने की कोशिश की थी। केदारभूमि में मंदिर का पुन:निर्माण कर या ऑलवेदर रोड बनाने से भले ही हम सामरिक दृष्टि से सुदृढ़ हुए हों लेकिन अधिक से अधिक श्रद्धालुओं की पंहुच तक आ जाने की नीयत से शुरू की गई हेलिकॉप्टर सेवा के कारण कस्तूरी मृगों के दिलों को पंहुचते आघात और कानों में पड़ते असहनीय शोर से उठती चीत्कार को सुनकर स्वंय शिव को ही समय-समय पर अपना रौद्र रूप दिखाना पड़े, इसमें संदेह नहीं। इसलिए सब कुछ लुटाकर होश में आने से पहले ही प्रकृति को बचा लें तो यही जगत का असली कल्याण होगा। आइये महाशिवरात्रि के अवसर पर आज यही संकल्प समर्पित कर हम प्रसन्न करें आशुतोष शिव को।
प्रतिभा की कलम से
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