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जोर शोर उन्मादी का है, खेल नया ये खादी का है …

वाजा इंडिया ने डेरा वाल भवन तिलक रोड में आयोजित की काव्य गोष्ठी

देहरादून : वाजा इंडिया की शनिवार को आयोजित काव्य गोष्ठी गीत – गजलों से सराबोर रही। एक तरफ श्रृंगार रस और ओज के गीतों पर श्रोता मंत्रमुग्ध हुए तो दूसरी तरफ हास्य व्यंग्य की फुहार का रंग बिखरा।
डेरावाल भवन तिलक रोड में आयोजित काव्य गोष्ठी का शुभारंभ कमलेश्वरी मिश्रा की सरस्वती वंदना से हुआ। मुख्य अतिथि एमकेपी पीजी कॉलेज की पूर्व प्राचार्य डॉ किरन सूद ने ‘अहो विस्तृत मेरे जग का कोना, शून्य से अलंकृत मातृ स्नेह से परिष्कृत सुकृत से संस्कारित एकाकीपन से संसृत यही है द्विगुणित हरितिमा से होना’, डॉ बसंती मठपाल ने ‘भागती दौड़ती गीत गाती नदी कल मुझे स्वप्न में बुलाती थी नदी ‘और वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” ने ‘ अति सुंदर मनभावन पावन रूप तुम्हारा तपते तन पर रिमझिम सावन रूप तुम्हारा ‘ सुनाकर वाहवाही लूटी। जीके पिपिल ने एक मुद्दत से उसके प्यार में हूं कभी मिले तो बात करूं इंतजार में हूं, भुवन कुनियाल ने ‘जोर शोर उन्मादी का है खेल नया ये खादी का है, आग धुंआ और पत्थर बरसे शहर पे बस उत्पादी का है’, कविता बिष्ट ने ‘तुम्हारा ख्याल आते ही जमाना भूल जाती हूं’, नीलोफर ने ‘बेटी घर की शान है बेटी है सम्मान कमतर तू मत आंकना समझो इसे महान’, सावित्री काला ने ‘नववर्ष तेरा कर रहे हैं हम अभिनन्दन’, डॉ नीलम प्रभा वर्मा ने ‘नखनिस्तान बनाएंगे मूर्खों पर मूर्खता बिखराएंगे’, जसवीर सिंह हलधर ने ‘लो साल पुराना चला गया अब नए साल का स्वागत हो सब के घर भोजन पानी हो खुशहाली हो दावत हो’ सुनाई। वहीं सुभाष चन्द्र वर्मा ने ‘किसने उड़ाया हवा में जहर कौन है जो नफरत फैला रहा है’, अंजू निगम ने ‘वो पहली सी मुलाकात नहीं उनसे कोई ताल्लुक जज्बात नहीं उनसे ‘ सुनाई। दूसरी तरफ नरेंद्र उनियाल ननु ने लघु कथा के माध्यम से अपनी बात कही। गोष्ठी की अध्यक्षता समाजसेवी और देहरादून के पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष दीनानाथ सलूजा और संचालन वाज़ा इंडिया के प्रदेश महामंत्री वीरेन्द्र डंगवाल पार्थ के किया। राजेश अज्ञान, वंदिता श्री आदि ने भी काव्य पाठ कर तालियां बटोरी। इस अवसर पर शिवालिक चैरिटेबल सोसायटी के अध्यक्ष एनआर गुप्ता मौजूद रहे।

अगली पीढ़ी को नहीं दे पा रहे भाषा : डॉ सूद
गोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ किरन सूद ने कहा कि भाषा सभ्यता को संवारती है, भाषा सृजन करती है। लेकिन हम अगली पीढ़ी को भाषा नहीं दे पा रहे हैं। यह अफसोस जनक है। भाषा टूटेगी तो समाज टूटेगा। वर्तमान में समाज सतही सूचना पर चल रहा है। अधिकतर लेखन सतही सूचना पर किया जा था है जो कि समाज के लिए हानिकारक है। लिखते समय यह अवश्य सोचा जाना चाहिए कि हम अगली पीढ़ी को क्या दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भाषा और संस्कृति पर काम करने की जरूरत है। कवि, साहित्यकार और बुद्धिजीवियों के लिए मंथन का समय है। उनकी जिम्मेदारी भी है कि वह समाज को सही राह दिखाएं।

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