सह लुंगी सारी बलाएं जिंदगी की, चाह बस …बेपनाह दो प्यार मुझको
जीवन कठिन मेरा, दो प्यार मुझको
क्यों देते हो तुम, ज़ख्म हज़ार मुझको
चाहत मेरी, कसौटी में खरा उतरुं
इंसा, तुम मत बनाओ शिकार मुझको
मैं, हर हाल में जीना सीख रही हूँ
तोहफ़े में मत दो अत्याचार मुझको
अग्निपरीक्षा देती रही सदियों से
तोहमतें देते हो तुम हज़ार मुझको
कोख़ में हूँ, तुम्हारी बेटी बनकर
गुज़ारिश है, प्रेम से निखार मुझको
सह लूंगी सारी बलाएं ज़िन्दगी की
चाह बस, बेपनाह दो प्यार मुझको
एक वचन चाहिये ज़िन्दगी से मुझे
हकीक़त से कराओ दीदार मुझको
~कविता बिष्ट