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हमारी बेबसी बोली है कुछ-कुछ, ये दुनिया तब कहीं समझी है कुछ-कुछ

-वाजा इंडिया ने कृष्ण गेस्ट हाउस चकराता रोड में आयोजित की काव्य गोष्ठी

देहरादून:वाजा इंडिया की शनिवार को आयोजित काव्य गोष्ठी में गीत-कविता और ग़ज़लों से सराबोर रही। गोष्ठी में श्रृंगार, हास्य् व्यंग्य से कवियों ने खूब रंग जमाया।
कृष्ण गेस्ट हॉउस चकराता रोड में आयोजित काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ कविता बिष्ट ने सरस्वती वंदना से किया।। वरिष्ठ शाइर अंबर खरबंदा ने रिश्तों पर दोहे के माध्यम से अपनी बात कुछ इस तरह कही कि ‘गांव गांव फुले फले प्रेम प्यार विश्वास, नगर निवासी झेलते रिश्तों के संत्रास’। वहीं ग़ज़ल पढ़ते हुए उन्होंने कुछ यूं कहा ‘हमारी बेबसी बोली है कुछ-कुछ, ये दुनिया तब कहीं समझी है कुछ-कुछ, हमें बिछड़े ज़माना हो गया है अभी भी मुझ में तू रहता है कुछ-कुछ। दूसरी तरफ कवि जीके पिपिल ने ‘लगता नहीं कि वो सियासत करता है, कुछ इस तरह से वो मुहब्बत करता है पड़ता है सामने तो लग जाता है गले भी, मगर पीठ पीछे मेरी मुखालफत करता है’ सुनाकर वाहवाही लूटी। कवि वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” ने प्रेम पर अपनी बात रखते हुए पढ़ा कि ‘ दिखेंगी झील सी आँखे यकीं फरमान होंगे ही, तुम्हारा साथ होगा जब जवां अरमान होंगे ही, भ्रमर कब तक सहेजेगा कि अरमानों को दिल में ही, कुसुम बिखरांयेंगे मकरंद तो रसपान होंगे ही’। डॉ बसन्ती मठपाल ने ‘तुम्हारे लिए सिर्फ़ एक शरीर है नारी और कभी मशीन हो जाती है बेचारी, जिन पर उगाते हो नाखूनों की फ़सलें, उफ़न आते तब वहाँ कइ रक्त धाराएँ स्पंदन शून्य सजीव पाषाण शिलाएँ, जो कुछ भी महसूस ना कर पायें’, कविता बिष्ट ने ‘जीवन जब तार-तार हुआ इंसा क्यों यहाँ बीमार हुआ, सुंदरता भी जैसे अभिशाप बनीभेड़ियों ने क्रूरता से शिकार किया, सुनों! क्यों नहीं सिखाते हो तुम बेटों को सही शिक्षा और संस्कार, नरभक्षी बन इन्होंने यहाँ बार-बार नारी की आत्मा का बलात्कार किया’ और ज्योत्स्ना जोशी ने ‘जो चीर बचाए नारी का वो वासुदेव अब नहीं उतरते’ के माध्यम से महिलाओं के साथ हो रहे यौन अत्याचार पर तंज कसा। निकी पुष्कर ने प्रेम पर कुछ यूं कहा ‘बिन पूछे दिल मे आ बैठे हद करते हो, ख्वाब दिखाते कैसे कैसे हद करते हो’, राजेश अज्ञान ने ‘जो प्रतिभाशाली होते हैंवे सुख से जी नहीं पाते हैं, जीतेजी जीने नहीं देते मरने पर पूजे जाते हैं’ सुनाई। युवा कवि बृजपाल रावत ने ‘मेरा कुछ भी लिखना
दो पल तुमसे बातें करना होता है, शब्दों में तुम्हे उतार कर, पन्नो पर सजाना तुम्हे अपनी उँगलियों से छूना होता है’ सुनाकर सबका आशीष पाया। इसके साथ ही जिया नहटोरी, जसवीर सिंह, कमलेश्वरी मिश्रा, निकी पुष्कर, आशा टम्टा, महेंद्र प्रकाशी, दानिश देहलवी, सुनील दत्त आदि ने भी काव्य पाठ किया। गोष्ठी की अध्यक्षता अंबर खरबंदा और संचालन वाजा इंडिया उत्तराखंड इकाई के प्रदेश महामन्त्री वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” ने किया। इस अवसर पर शिव प्रसाद दुबे आदि मौजूद रहे।

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