प्रतिभा नैथानी की कलम से.. हर बीमारी की पहली वैक्सीन है “स्वच्छता और संयम”
घर से निकलते हुए सोचा नहीं था कि रास्ते में बारिश से मुलाकात हो जाएगी। किसी काम से एक जगह गाड़ी रोकी तो काम हो जाने के बाद भी सामने एक बेल के पेड़ पर अपनी लंबी चोंच से ठक-ठक-ठक करते हुए एक रंगीन कठफोड़वे ने कुछ देर और वहीं रोक लिया। पत्तियों को बुखार नहीं आता, लेकिन ये पक्षी भीग गया तो कहीं इसे बुखार ना आ जाए। मेरी चिंता पेड़ पर उसकी चोंच के प्रहार को और तेज कर देना चाहती है। बाहर होती बारिश का नजारा अपने खोह के अंदर से देख पाने जैसी चाहत उस अजनबी पक्षी के लिए एक पल में ही मेरी आंखों में उग आई है।

पेड़, पक्षी, फूल, पानी की बूंदों, पत्तियों में जाने कौन सी चुंबकीय संवेदनाएं छुपी होती हैं कि इंसान की कोमल भावनाएं और नरम नजरों को यह बरबस अपनी ओर खींच ही लेती हैं। इतना प्यारा रिश्ता होने के बाद भी हम उनके प्रति निष्पाप नहीं हैं, यह भी एक कटु सत्य है।
कहते हैं कि बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के बाद हर प्रकार की हिंसा से तौबा कर लेने के उपरांत भी अशोक अपने प्रिय मांसाहार मोर के मांस का लालच नहीं छोड़ पाया था। तीतर, बटेर, कबूतर, बतख, टर्की का शाही बावर्चीखानों की नित्य की दावतों में शामिल होना जहां आम बात थी, वहीं “सोने-चांदी की महंगी-महंगी भस्म खा पाना तुम्हारे बस की बात नहीं …का शिकार ही तुम्हारा कुछ भला कर सकता है”। सीपियां फिल्म में वैद्य जी की ओमपुरी को धीमी आवाज में दी गई गुप्त सलाह आम और गरीब लोगों की नजरों में कौवे जैसे दोयम दर्जे के पक्षी के लिए भी चमक पैदा कर देता है।
अपनी कमजोरियों से लड़ता हुआ यह इंसान ही है जो अपनी खुद को ताकतवर बनाने के लिए किसी में भी कुछ भी फायदा ढूंढ सकता है। पिछली सदी में पक्षियों का सबसे बड़ा कत्लेआम सन 1930 में भरतपुर में आयोजित हुआ था, जब वहां अंग्रेज वायसराय के सम्मान में आयोजित शिकार समारोह के दौरान लगभग सत्रह हजार पक्षियों को जान का नुकसान हुआ था।
ऐसे कम ही लोग होते हैं जो मशहूर पक्षी विज्ञानी सलीम अली की तरह एक गौरैया को धराशायी करने के पश्चाताप में पूरा जीवन “फॉल ऑफ ए स्पैरो” के चिंतन में लगा देते हैं और चौधरी चरण सिंह जैसे प्रधानमंत्री भी अब नहीं रहे जिन्होंने उनके अनुरोध पर जैव विविधता की अनुपम धरोहर केरल की साइलेंट वैली को बांध की भेंट चढ़ा देने के बजाय वन्य जीव और पक्षियों के लिए सुरक्षित घोषित कर जीवनदान दे दिया था।
मौसम का बदलना कुदरत का नियम है। मौसम परिवर्तन के कारण साइबेरिया जैसे इलाकों में अत्यधिक ठंड की वजह से समताप रहने में कठिनाई से बचने के लिए वहां के पक्षी अपनी जगह छोड़कर कुछ समय के लिए दूसरे देश के अभयारण्यों में चले आते हैं। प्रकृति उनके स्वागत के सारे इंतजाम पहले से किए रहती है। उन्हें रोक पाना या लौटा पाना इंसानों के बस की बात नहीं।
ऐसे में इन प्रवासी पक्षियों से उत्पन्न बर्ड फ्लू से फैले मौजूदा संकट का क्या समाधान है?
इनको संकट में डालने का काम भी तो हमारी ही दुष्प्रवृत्तियां करती हैं। बर्डफ्लू एक प्रकार का इन्फ्लुऐंजा वायरस है। इसके फैलने का मुख्य कारण है गंदगी। हम अपने पर्यावरण को दिन-प्रतिदिन जितना दूषित करते रहेंगे, बीमारियां भी उसी अनुपात में नया-नया रूप धरकर सामने आती रहेंगी। कोरोना वायरस उत्पन्न होने का केंद्र स्थल चमगादड़ जैसे विभिन्न पक्षियों और पशुओं के मांस का विक्रय स्थल चीन के वुहान शहर का सबसे दूषित मीट-मार्केट ही तो था।
एक वक्त था कि पेड़-पौधों की स्वच्छ हवा और सात्विक खानपान की बदौलत व्यक्ति सौ साल की उम्र भी आसानी से पार कर जाता था, लेकिन अब नवजात शिशु भी बाहर की दुनिया देखने से पहले वैक्सीन की बाट जोह रहा है।
जिम्मेदार कौन है ?
दीर्घ और स्वस्थ जीवन के लिए शाकाहार ही सर्वोत्तम विकल्प है, फिर भी मांसाहार में अधिक प्रोटीन और स्वाद ढूंढने वालों से भी अपील तो की जा सकती है कि किसी भी चीज का सेवन तभी सुरक्षित है जब वह स्वयं स्वच्छ पोषण से पुष्ट हुई हो। मान क्यों नहीं लेते कि हर बीमारी की पहली वैक्सीन है “स्वच्छता और संयम”।
प्रतिभा की कलम से
