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पिता दिवस पर विशेष: धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी की पिता को समर्पित रचना

धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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पिता का वंदन
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मेरे नयनों के स्वप्नों को, निश्चित आकार दिया जिसने,
सहजता से आजीवन मुझको बेहद प्यार किया जिसने!

जिसकी अंगुलि थामे मैं अक्षर अक्षर पढ़ना सीखा,
जिसकी प्रेरणा से प्रेरित होकर गीतों को गढ़ना सीखा!

मेरे नन्हे पंखों को जिसने सबल रूप साकार दिया,
मेरी खुशहाली की चलते तन-मन अपना वार दिया!

संघर्षों मे धैर्य सिखाया मन में नित नये उदगार दिये,
परम्पराओं की समझ सिखाई और अच्छे संस्कार दिये।

नैतिकता का पाठ पढ़ाया और राष्ट्र भक्ति का ज्ञान दिया
जिसने मुझको सभ्य बनाकर स्वावलम्बन प्रदान किया,

जिसकी मेहनत की खुशबू से गंध चंदन की आती है,
ऐसे श्रेष्ठ पिता का वंदन मेरी क़लम भी गाती है!!

ऐसे श्रेष्ठ पिता का वंदन मेरी क़लम भी गाती है!

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