युवा कवि धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’ की गढ़वाली रचना.. मौज़ नेता अर सरकारू की होणी।

धर्मेंद्र उनियाल ‘धर्मी’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
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मातृभाषा तैं समर्पित रचनाकारू तैं सादर समर्पित
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दुर्गति यख कलाकारू की होणी,
मौज़ नेता अर सरकारू की होणी।
जगदी आग न कूई धूपाणू नी देंदू ,
आरती बुझयां अंगारू की होणी!!
मातृ-भाषा की कूई बात नी करदू ,
खुदैड गीतू तैं अब कूई नी रचदू।
भूखा मरना लोक कवि अर गीतांग,
बेइज्जती गीतू मा अलंकारू की होणी!!
दुर्गति यख कलाकारू की होणी।
मौज़ नेता अर सरकारू की होणी।।
अपणी बोली भाषा मा कोई बच्यांदू
जागर नी सुणदू , मांगल नी लगांदू,
धुंयाल-बाजूबन्द- हारूल न मण्डाण।
बात त बस घर घर दारू की होणी!!
दुर्गति यख कलाकारू की होणी,
मौज़ नेता अर सरकारू की होणी!!
मंच घैरयां छन बडा ठेकेदारू का,
कुछ नेतों का कुछ त्यूंका रिशेदारू का,
कविता का सिपाही भूखा छन मरना,
जिमण सरकारी क़लमकारू की होणी!!
दुर्गति यख कलाकारू की होणी,
मौज़ नेता अर सरकारू की होणी।