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भगवत चिंतन: आपका क्रोध, नफरत, ईर्ष्या और आपका द्वेष भी एक धीमा जहर …

भगवद् चिंतन … विकार

जिस प्रकार से जहर को खा लेने पर वह स्वयं के लिए घातक होता है, उसी प्रकार से आपका क्रोध, आपकी नफरत, आपकी ईर्ष्या और आपका द्वेष भी एक धीमा जहर है।

आदमी क्रोध, नफरत, ईर्ष्या और द्वेष करता है और सोचता है कि इससे दूसरों का अहित होगा। लेकिन, याद रखना यदि इन सभी जहरों का पान आप कर रहे हैं तो अहित किसी और का कैसे हो सकता है?

आंतरिक विकार मनुष्य द्वारा अपने ही मार्ग में खोदे गये उस कूप के समान है, जिसमें देर-सबेर उसका गिरना अवश्यंभावी हो जाता है। जीवन के समस्त आंतरिक विकारों के समूल नाश के लिए केवल एकमात्र संजीवनी बूटी है … और वह है, सद्गुरु की शरण, जो हमें सद ग्रंथ और सत्संग का आश्रय दिलाकर सदमार्ग की ओर निरंतर गति कराते हुए उस परम सत्य तक ले जाती है।

अमिय मूरिमय चूरन चारू।
समन सकल भव रुज परिवारू।।

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