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आओ करें प्रणाम उन्हें हम जिन से यह गणतंत्र

-उत्तराखंड साहित्य सम्मेलन (साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक मंच) और हिमालय विरासत न्यास ने गणतंत्र दिवस पर आयोजित की काव्य गोष्ठी।

देहरादून। उत्तराखंड साहित्य सम्मेलन (साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक मंच) और हिमालय विरासत न्यास की ओर से गणतंत्र दिवस पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। 6- प्रीतम रोड डालनवाला में आयोजित काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद राजेंद्र निर्मल और संचालन कवि/गीतकार वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” ने किया।

काव्य गोष्ठी का शुभारंभ नीलम पांडेय नील की सरस्वती वंदना के साथ हुआ। काव्य पाठ करते हुए नीलम ने महाकुंभ में हाइलाइट होती खबरों पर पढ़ा कि ‘एक शहर में केसरिया नदी तूफान पर है, हजारों नग्न युवा जलाभिषेक कर रहे हैं, शिव और शैलजा के खेल चल रहे हैं, कुछ सच्चे कुछ झूठ भी पल रहे हैं, महादेव बहरूपियों से घिर गए हैं’, देशभक्ति पर उन्होंने पढ़ा कि शपथ है तुमको मेरे दोस्त, मेरे जाने के बाद रस्म की मेरी कोई गुजारिश ना होगी, बस छोटी सी ख्वाहिश मेरे कफन में तिरंगे की होगी। मुख्य अतिथि नीरज नैथानी ने लार्ड मैकाले की एशिया के साहित्य पर की गई टिप्पणी पर पढ़ा कि ‘मिस्टर लार्ड मैकाले अपनी जबान संभालें, अनाप-शनाप न कह डालें, हमें लगती है यह मानसिक बीमारी कि लंदन की एक अलमारी तुम्हें लगती है सारे एशिया के साहित्य पर भारी। वीरेंद्र डंगवाल “पार्थ” ने उत्तराखंड पर आधारित गीत का पाठ करते हुए पढ़ा कि भारत का है भाल हिमालय शिव शंकर का डेरा, जन्म मिला पावन धरती पर भाग अनूठा मेरा। इसके बाद देशभक्ति पर छंद सुनाते हुए उन्होंने पढ़ा कि ‘मोहिनी का रूप धर नाचते हैं दामोदर, पूजित हैं विषधर धरती ये न्यारी है’। उन्हें श्रोताओं की खूब वाहवाही मिली।

ओज के कवि श्रीकांत श्री ने पढ़ा कि ‘आओ करें प्रणाम उन्हें हम जिन से यह गणतंत्र, बलिवेदी पर खुद को वारा तब पाया यह तंत्र, जय बोलो भारत मां की जय’ सुनाकर तालियां बटोरी। जीके पिपिल ने पढ़ा कि ‘अपनी मोहब्बतों की इबादत कभी कबूल ना हो सकी, जरूरी सजदे जरूरी कुर्बानी जरूरी हलाले कर लिए’। मोनिका मंतशा मैं पढ़ा कि ‘ये मत समझना कि किस्सा बदलने वाला है, महज यह साल पुराना बदलने वाला है, वही लिबास वही जिस्म और वही सूरत, मगर ये लगता है शीशा बदलने वाला है’। हिंदी के साथ ही लोकभाषा गढ़वाली में लिखने वाले देवेंद्र उनियाल ढूंगू के पढ़ा कि ‘तुमने पहाड़ देखा है शायद देखा होगा, मैंने तो जी भर देखा है।

युवा शायर सागर डंगवाल ने ‘मुझको नहीं रहती खबर अपनी, मैं मगर हर खबर में रहता हूं’ सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं धर्मेंद्र उनियाल धर्मी ने ‘नज़रों में दुनिया वालों की गिर नहीं गए, ना बोला दिल ने जाने को तो फिर नहीं गए, होना है तो जाए कोई देवता नाराज़, हम दिल दुःखा के माँ का मन्दिर नहीं गए’ सुनाकर तालियां बटोरी।

गोष्ठी में वरिष्ठ शायर अंबर खरबंदा, नरेंद्र उनियाल, सुखजिंदर कौर, राजेश डोभाल, सुभाष चंद्र वर्मा, रविन्द्र सेठ रवि, नरेंद्र शर्मा अमन, नीलम प्रभा वर्मा, संगीता शाह शकुन, जसवीर सिंह हलधर, महिमा श्री आदि ने भी शानदार काव्य पाठ किया।

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