लहरों पर बहते फूल कहीं अपने होते?
नवोदित प्रवाह ने प्रवासी साहित्यकार डॉ शरद आलोक के सम्मान में आयोजित की गोष्ठी
शब्द रथ न्यूज (ब्यूरो)। 6 नवम्बर। नवोदित प्रवाह की ओर नार्वे से पधारे प्रवासी साहित्यकार डॉ. सुरेश चंद्र शुक्ल “शरद आलोक” के सम्मान में साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें नगर के प्रमुख लेखकों व कवियों ने भाग लिया।

गोष्ठी में मुख्य अतिथि डॉ. शरद आलोक ने अपनी संवेदनशील रचना “तुम मुझे मिल गए” का सस्वर पाठ किया। उन्होंने नार्वे में हिन्दी में किए जा रहे सृजन कार्यों पर भी प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि प्रसिद्ध आर्थोपेडिक विशेषज्ञ एवं पद्मश्री डॉ. भूपेन्द्र कुमार सिंह ‘संजय’ ने विकसित भारत पर अपनी कविता “बढ़े देश, यह कर्तव्य निभाना होगा…” प्रस्तुत की। वहीं, सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने उत्तराखंड पर अपनी प्रसिद्ध रचना “वह हवा पहाड़ी नागिन-सी जिस ओर गई, फिर दर्द भरे सागर में
मन को बार गई, चादर कोहरे की ओढ़े यायावर सोते, लहरों पर बहते फूल कहीं अपने होते? सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। डॉ बसंती मठपाल ने “ज़रा ज़रा सी मंज़िलें, ज़रा ज़रा सी ख्वाहिशें…” जय प्रकाश पांडेय ‘पहाड़ी’ ने “पहाड़ का आख़िरी ख़त” कविता का मार्मिक पाठ किया। वहीं, कवि/गीतकार वीरेन्द्र डंगवाल “पार्थ” ने श्रृंगार का सुंदर छंद “नयन नयन मिले नयन कमल खिले, नयन ही नयन में हो गया चयन है” और मुक्तक “मोह का संयोग मोहन की दिवानी हो गई, प्रीत की वो राजरानी राजधानी हो गई, भूल पाएगा न मीरा प्रेम तेरा जग कभी, गरल पीकर सरल सी पावन कहानी हो गई” सुनाकर प्रशंसा बटोरी।
गोष्ठी में चंदन सिंह नेगी, डॉ सोमेश्वर पांडेय, डॉ. सुदेश व्याला, जीके पिपल, शिवमोहन सिंह, राहुल वशिष्ठ ने भी कविता पाठ किया। गोष्ठी का सुंदर संचालन नवोदित प्रवाह के प्रधान संपादक रजनीश त्रिवेदी ने किय। इससे पूर्व डॉ बुद्धिनाथ मिश्र और रजनीश त्रिवेदी ने शॉल ओढ़ाकर और पुष्प गुच्छ भेंटकर डॉ शरद आलोक का सम्मान किया। अंत में नवोदित प्रवाह का प्रेम विशेषांक मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि को भेंट किया गया। डॉ बसंती मठपाल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
