“बस्ते की जगह नगाड़ा” स्कूल चलो अभियान के दौरान हकीकत से रूबरू, बालमन की कोमल भावनाओं का सम्मान
कमलेश्वर प्रसाद भट्ट
प्रवक्ता, राइंका बुरांश खंडा
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एक अविस्मरणीय यात्रा
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जी हाँ, इतनी सुन्दर ध्वनि, आनन्द आ गया। ओह! ये क्या, मासूम बच्चे के कन्धे में बस्ते की जगह नगाड़ा? यह देख पहले तो हम भी चौंक गए थे, गुस्सा और मासूमियत पर तरस भी, इस उम्र में यह देख आपकी प्रतिक्रिया भी कुछ ऐसी ही होगी। लेकिन, हैरानी की बात नहीं, हकीकत जानो तो अनुकरणीय है।
“स्कूल चलो अभियान” के दौरान बुरांसखंडा इण्टर कॉलेज से लगभग 6 किमी दूर नालीकला होते हुए जब हम दुरमाला गांव के नीचे जड़-ऐंच नामक स्थान पर पहुंचे तो एक समारोह में पारंपरिक तरीके से बज रहे “ढ़ोल-दमाऊं” की सुन्दर ध्वनि सुनकर हम ठहर गए। पास गए, तो पता चला कि यहाँ तो शादी-समारोह है। शादी भी हमारी ही दो-दो पूर्व छात्राओं की। हमें और भी अधिक प्रसन्नता हुई कि ये ढोल-दमाऊं तो हमारे स्वागत-सत्कार के लिए ही बजाये जा रहे हैं। खैर, ये तो उत्तराखंड की संस्कृति है “अतिथि देवो भवः”। अन्तः मन में बार-बार एक ही प्रश्न उठ रहा था, इस बच्चे के बारे में जानकारी प्राप्त करने की, जिज्ञासा भी और इसके लिए कुछ करने की।
औरों से क्यों, बच्चे के पिता से ही सीधे संपर्क किया। बच्चे के पिता ने बड़े गर्व से बताया कि यह तो अभी तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है, इसका शौक है संगीत का। स्कूल में भी पारंपरिक रीति-रिवाजों से संबंधित लोकगीत-लोकनृत्य में यह ढोलक बजाकर खूब सराहा जाता है। बताते हैं कि बच्चा पढ़ाई में भी अब्बल है। अभी तीसरी कक्षा में है। पाँच के बाद अपने विद्यालय में अवश्य प्रवेश दिलायेंगे, तब तक हो सके तो मदद का प्रयास कर प्रोत्साहित करने की कोशिश करेंगे।
बच्चे के पिता का मानना है कि बच्चा पढ़ाई में तो अच्छा है ही, इसकी स्वयं की रुचि के अनुसार प्रतिभा को निखारने का भरसक प्रयत्न किया जाएगा। मुझे खुशी है कि बच्चा अपनी योग्यता से पूर्वजनों की विरासत को बचाकर कुछ नया कर अपनी पहचान बनाएगा। पूर्व छात्राओं के साथ बच्चे को आशीर्वाद देकर आगे बढे सिल्ला गांव की ओर।
अब वर्तमान में बालक पाँचवीं पास भी हो गया होगा। पिछले सत्र की तरह इस बार भी हम कोरोना नियमों की गाइडलाइन के अनुसार ही कुछ कर पा रहे हैं। ऐसे बच्चों को चिन्हित कर हर सम्भव मदद पहुँचाने की कोशिश की जायेगी।
हमें खुशी इस बात की भी है कि पास के गाँव से ही ढ़ोल वादक मीणा दास के दो बच्चों ने गत वर्ष हमारे विद्यालय में प्रवेश लिया था। अब वे बारहवीं कक्षा में हैं। ख्याति प्राप्त प्रसिद्ध जागर सम्राट पदमश्री प्रीतम भरतवाण की अगुवाई में यदि इस क्षेत्र के नौनिहालों में लोकसंस्कृति की ललक दिखती है तो यह भविष्य के लिए सुकून देने वाली बात होगी। कोरोना कॉल में बच्चों का भविष्य कैसे सुरक्षित हो, उच्च अधिकारियों से प्राप्त दिशा-निर्देश व स्थानीय जनसहयोग के लिए स्टॉफ के साथ कोशिशें जारी रहेंगी।