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युवा कवि अमित नैथानी ‘मिट्ठू’ (अनभिज्ञ) की एक रचना… मैं आज भी प्रतीक्षारत हूँ..

अमित नैथानी ‘मिट्ठू’ (अनभिज्ञ)
ऋषिकेश, उत्तराखंड

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मैं आज भी प्रतीक्षारत हूँ..
उस पथ पर,
जहाँ से तुम्हारे कदम शहर की तरफ बढ़े थे।

मैं आज भी इसी आस में तुम्हारी राह देखता हूँ
कि कभी तो वापस आओगे तुम इस वीरान पथ पर…

मुझे देखकर थोड़ा ठहर तो जाओगे
मुझसे मेरा हाल-चाल तो तुम जरूर पूछोगे
फिर अवगत करवाऊंगा तुम्हें स्वयं से
बताऊंगा तुम्हें अपना हाल चाल
सुनाऊँगा तुम्हें अपने दुःख दर्द
कि तुम्हारे जाने के बाद

सचमुच मैं पहाड़ सा हो गया हूँ…

जिसमें समय-समय पर तुम्हारे प्रति…
मेरी भावनाओं का भूस्खलन होता रहता है!

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