अमित नैथानी मिट्ठू…. महादेव आप सत्य हो, अनन्त हो, अविनाशी हो…
अमित नैथानी मिट्ठू
ऋषिकेश, उत्तराखंड
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महादेव कितने सौम्य हैं आप। गले मे सर्प, कानों में बिच्छू, वस्त्रों में बाघम्बर, दुनिया जिनसे दूर भागती है उन्हें आपने अपना आभूषण बना रखा है। चन्दन लगाने के बजाय आप श्मशान की भस्म से खुद को शृंगित करते हो। मस्तक पर चन्द्र और जटाओं में गङ्गा को स्थान दिया है, जिन्हें मांगलिक कार्यों में कोई भी बुलाने की तो छोड़ो सोचता तक नहीं है, उन भूत-पिशाचों को आप अपने विवाह में निमंत्रण देते हो। अहो! कितने करुण हो आप महादेव। सिर्फ एक लोटा जल से आप प्रसन्न हो जाते हो। संसार के विषाक्त पदार्थों को अपने कण्ठ में प्रच्छन्न कर देते हो। ध्यानस्थ होकर किसका तथ्यान्वेषण करते हो?
आप भूतों के भी उतने ही प्रिय हो जितने भक्तों के.. मैं न तो भक्त हूँ और न मेरे पास आपको न्यौछावर करने के लिए कुछ है। वह जल जिससे आपका अभिषेक करता हूँ वह भी आपके ही हिमालय का है।
मैं आपसे कुछ भी याचना नहीं करता और न ही स्वयं के लिए आपके पास अनुसंशा हेतु आता हूँ। मुझे इस झूठी वाणी से आपकी स्तुति करनी भी नहीं आती। मैं सिर्फ स्वयं का जीवन ढूंढ रहा हूँ। क्योंकि, आपकी इस मोह मयी सृष्टि में मेरा मन नहीं लगता। आप अनेकों बार आये हो मेरे कृष्ण विवर में, मैं तब समझ नहीं पाया। काल को हरने वाले हे महाकाल, योगियों के योगी, ध्यानस्थ साधकों के ईष्ट! मुझे भी विरक्त होना है आपकी ही तरह, मुझे भी ध्यानस्थ होना है आपकी ही तरह।
महादेव आप सत्य हो, अनन्त हो, अविनाशी हो, परन्तु मुझमें इतना सामर्थ्य भी नहीं है कि मैं आपके सहस्त्र नामों में से एक नाम का उच्चारण भी ढंग से कर पाऊँ। प्रभो! आप अत्यधिक दूर हैं और अत्यंत पास भी, आप महाविशाल भी हैं तथा परमसूक्ष्म भी, आप श्रेठ भी हैं तथा कनिष्ठ भी। आप ही सभी कुछ हैं साथ ही आप सभी कुछ से परे भी हैं। हे शंकर मैं आपके वास्तविक स्वरुप को नहीं जानता। आपके उस वास्तविक स्वरूप जिसे मैं नहीं जान सकता उसको नमस्कार करता हूँ।
सृष्टि में संहार का कार्यभार आपके हाथों में है। विनती है महादेव जब भी मेरा अन्त समय आये आप काल बनकर मुझे लेने मत आना.. काल बनकर आओगे तो मैं भयभीत हो जाऊँगा। आप उसी स्वरूप में आना जो स्वरूप आपका कैलाश में है.. तब मेरा हाथ पकड़कर अपने साथ ले जाना, मैं चलूंगा आपके साथ आपकी ही धुन में आपका नाम जपते हुए।
शिवोहम्… शिवोहम् …. शिवोहम् ……..