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अमित नैथानी ‘मिट्ठू’ की कविता… कर्म निकृष्ट तो किये हैं हमने, जो मुँह छुपाये बैठे हैं..

अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’
ऋषिकेश, उत्तराखंड
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कर्म निकृष्ट तो किये हैं हमने,
जो मुँह छुपाये बैठे हैं।
एक छोटे से मास्क से हम,
अपनी जान बचा रहे हैं।

दुबके छुपके भटक रहे हैं,
हम अपनी चार दिवारी में।
कोई तड़फा भूख प्यास से,
कोई कोरोना बिमारी में।

एक अदृश्य विषाणु न जाने,
कितने चराग बुझा गया।
कितने बच्चे बूढों को ये।
पल भर में रुला गया।

हो गई हमसे जो भी गलती,
हे प्रभु अब माफ करो।
मेरे भारतवर्ष को अब तुम,
भय और मास्क से मुक्त करो।।

©® अमित नैथाणी ‘मिट्ठू’

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