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कांग्रेस में असंतोष साधने को बनाया बैकअप प्लान, सबको साथ लेकर चलने की कोशिश

देहरादून: टिकट वितरण के बाद पार्टी में उठने वाले असंतोष को थामने के लिए कांग्रेस ने बैकअप प्लान भी तैयार किया हुआ है। इसकी जिम्मेदारी मौजूदा व पूर्व विधायकों को सौंपी गई है। पार्टी इस बात को समझ रही है कि यह किसी चुनौती से कम नहीं है। इतना ही नहीं, चुनावों की परिस्थितियों व पार्टी के मौजूदा हालात का हवाला देते हुए उन्हें कार्यकर्ताओं को समझाने को कहा गया है।

कांग्रेस के लिए मौजूदा चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं हैं। यह बात कांग्रेस भी बखूबी जानती है। चूंकि कांग्रेस अभी सत्ता से बाहर है इस कारण पार्टी फंड का बड़ा संकट है। टिकट वितरण में प्रत्याशियों की माली हालात भी एक बड़े कारण के रूप में सामने आई है।

सूत्रों की मानें तो पार्टी पूर्व में ही दावेदारों को यह स्पष्ट कर चुकी है कि चुनाव उन्हें अपने बूते ही लड़ना होगा। पार्टी उन्हें तकनीकी व कार्यकर्ताओं का तो पूरा सहयोग देगी, लेकिन खर्च प्रत्याशियों को स्वयं ही उठाना होगा। यही कारण भी रहा कि कई स्थानों पर बड़े दावेदारों ने एन वक्त पर अपने कदम पीछे खींचे।

बावजूद इसके एक बड़ा धड़ा फिर भी पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ने को बेकरार नजर आया। पार्टी ने प्रत्याशियों का चयन तो बहुत सोच समझ कर लिया, लेकिन इस समय भीतर उठने वाले आक्रोश पर भी नजर रखी जा रही है। इसकी जिम्मेदारी विधायकों, पूर्व विधायकों व जिलों के पदाधिकारियों को सौंपी गई है।

उनसे कहा गया है कि असंतुष्टों से बात कर उन्हें पार्टी को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने को मनाया जाए। उन्हें वर्तमान स्थिति के साथ ही चुनाव लड़ने के लिए आर्थिक हालात के बारे में अवगत कराया जाए। उन्हें यह महसूस कराया जाए कि यह वक्त पार्टी को मजबूत करने का है।

पार्टी यदि निकायों में अच्छा प्रदर्शन करेगी तो यह लोकसभा के लिए जीत का आधार बनेगा। इससे आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी का धरातल और मजबूत होगा। दिग्गजों को पूरी तरजीह पार्टी ने निकाय चुनावों में पार्टी दिग्गजों को पूरी तरजीह दी है।

पार्टी ने हरीश रावत और इंदिरा हृदयेश के निकट माने जाने वालों को टिकट दिए हैं। देहरादून में पार्टी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री दिनेश अग्रवाल को मैदान में उतारा है। नैनीताल में तो नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा हृदयेश के पुत्र को टिकट दिया गया है तो वहीं कोटद्वार में पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी की पत्‍‌नी को। इससे साफ है कि पार्टी निकाय चुनावों में बेहतर प्रदर्शन के लिए हर तरह के कदम उठा रही है।

सबको साथ लेकर चलने की रही कोशिश

निकाय चुनाव में महापौर व अध्यक्ष पदों पर प्रत्याशी तय करने में कांग्रेस ने सभी जिलों में पूर्व सांसदों व मौजूदा विधायकों के साथ ही पूर्व विधायकों और जिला पदाधिकारियों की पसंद को पूरी तवज्जो देने का प्रयास किया। ऐसा कर पार्टी नेतृत्व ने सबकी सामूहिक जिम्मेदारी तय करते हुए पूरी ताकत से चुनाव में उतरने की रणनीति बनाई है।

विधायक व पूर्व विधायकों को अपनी पंसद का उम्मीदवार देकर नेतृत्व ने इन्हें अपने उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी तय की है। कांग्रेस के लिए यह चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं है। जिस तरह विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा उसे देखते हुए अब प्रदेश नेतृत्व पार्टी में फिलहाल कोई अंतरकलह झेलने के मूड में नहीं है।

विशेषकर पूर्व विधायक व जिलों में पार्टी की कमान संभालने वालों को टिकट वितरण में साधने का प्रयास किया गया। इसका मकसद यह कि उम्मीदवारों को जिताने के लिए इनकी सीधी जिम्मेदारी तय हो सके। टिकटों की घोषणा करने से पहले पार्टी पदाधिकारी भी सामूहिक सहमति से उम्मीदवार चुनने की बात पर जोर देते रहे।

दरअसल, बीते चुनावों में कांग्रेस बिखरी हुई थी। चुनाव के दौरान पार्टी को भितरघात से खासा नुकसान उठाना पड़ा था। कई जगह पार्टी केवल बागियों की वजह से ही चुनाव हारी। ऐसे में कांग्रेस ने पुराने अनुभव से सबक लेते हुए सभी को तवज्जो दी। जिस तरह से विधायकों की पत्‍‌नी, जिलाध्यक्षों के नजदीकियों के नाम टिकट वितरण में नजर आए, उससे साफ है कि केंद्रीय नेतृत्व ने हर जगह अपनी पसंद थोपने का प्रयास नहीं किया। इसे पार्टी की दूरगामी रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है।

दरअसल, निकाय चुनाव के कुछ समय बाद लोकसभा चुनाव भी होने हैं। इसके लिए कांग्रेस को बूथ स्तर तक कार्यकर्ताओं की टीम तैयार करनी है। इसका जिम्मा भी विधायकों व जिलों के पदाधिकारियों पर रहेगा। निकाय चुनावों में इन सबके सक्रिय होने का फायदा पार्टी को लोकसभा चुनाव में भी मिलेगा। अभी से पार्टी कार्यकर्ताओं के सक्रिय होने से लोकसभा चुनावों में पार्टी को जगह-जगह अपनी पहुंच बनाने में दिक्कत भी नहीं आएगी।

सक्रिय कार्यकर्ताओं में देखी गई मायूसी प्रदेश कांग्रेस ने भले ही प्रत्याशियों का चयन करते हुए स्थानीय नेताओं को पूरी तवज्जो दी, लेकिन लंबे समय से पार्टी का झंडा-डंडा बुलंद करने वाले कार्यकर्ताओं को जरूर कुछ निराशा हाथ लगी है।

पार्टी में कई कार्यकर्ता ऐसे हैं जो दशकों से पार्टी से जुड़े हैं। बावजूद इसके कोई ठोस पैरोकारी न मिलने के कारण इन्हें टिकट नहीं मिल पाता है। ऐसे कार्यकर्ता सूची जारी होने के बाद अपनी पीड़ा दर्ज कराते भी नजर आए।

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