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और जब भरे दरबार में बेगम अख्तर ने मांग लिया आंवले का मुरब्बा

-बेगम अख़्तर साहिबा अपने जमाने की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका थीं। दादरा, ठुमरी इत्यादि संगीत की अन्य शास्त्रीय विधाओं में उन्हें महारत हासिल थी

शिवानी का लिखा हुआ, ‘कोयलिया मत कर पुकार’ जब ‘नवनीत’ में छपा तो पुरस्कार स्वरूप एक अंगूठी उनको पहनाते हुए बेगम साहिबा ने कहा थी -“अख़्ख़ाह, अब लगा ईद आई..”

-‘वो जो हम में तुम में करार था’, ‘मेरे हमनफ़स मेरे हमनवां’, ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया’, ‘इश्क में गैरत-ए- जज़्बात’ जैसी कई ग़ज़लें और ‘हमार कहिन मानो राजा जी’, ‘कोयलिया मत कर पुकार’, ‘हमारी अटरिया पे आओ’ … जैसी अनमोल शास्त्रीय भेंट दी हैं अख्तरी ने

बैंगनी रंग के जॉर्जेट की साड़ी, बाहों में फ्रिल लगा ब्लाउज, जैसा कि उन दिनों चलन था, हाथों में मोती के कंगन, कानों में झिलमिलाते हीरे, अंगुली में दमकता पन्ना, कंठ में मोतियों का मेल खाता कंठा, पान दोख़्ते से लाल-लाल अधरों पर भुवनमोहिनी स्मित, ये थीं अख़्तरी बाई फैजा़बादी।
वह अपनी असंख्य शिष्याओं में से अनेक को अपने साथ मंच पर बिठा, अपने गाने की एक-आध पंक्ति गाने का भी सुअवसर देतीं थी। उनमें से प्रत्येक प्रतिभाशालिनी सुकंठी गायिका हो, ऐसी बात नहीं थी ।
पूछने पर कहती थीं ‘देखो, इन से उनका हौसला बढ़ता है, तो हर्ज़ ही क्या है?

बेगम अख़्तर साहिबा अपने जमाने की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायिका थीं। दादरा, ठुमरी इत्यादि संगीत की अन्य शास्त्रीय विधाओं में महारत हासिल, इसी से तो सांस्कृतिक मंच और रेडियो की शान थीं वो, लेकिन अब उनके बारे में कम ही पढ़ने को मिलता है, तो ऐसे में उनके समकालीन जो लिख गए हैं, वह कुछ पढ़कर भी बेगम अख़्तर को जाना जा सकता है।

शिवानी जी का लिखा हुआ, ‘कोयलिया मत कर पुकार’ जब ‘नवनीत’ में छपा तो पुरस्कार स्वरूप एक अंगूठी उनको पहनाते हुए बेगम साहिबा कहती हैं -“अख़्ख़ाह, अब लगा ईद आई..”। “अल्लाह जानता है, हम पै बहुत लिखा गया, पर इत्ता उम्दा किसी ने नहीं लिखा” वह दिलकश आवाज, स्नेह से छलकती वे रससिक्त आंखें और वह स्वरभंग होती हंसी मेरे जीवन की संचित बहुमूल्य धरोहर हैं .. इस तरह याद किया है बेगम अख़्तर को शिवानी जी ने ‘स्वर-लय नटिनी’ में

इसी तरह ईसुरी की फागें गाने में माहिर नजरबख़्श सिंह, जो महाराजा ओरछा के एडीसी थे, याद करते हैं बेगम अख़्तर को-
“जब घटा आती है
सावन में रुला जाती है
आदमीयत से गुज़र जाता है
इंसा बिल्कुल
जब तबीयत किसी
माशूक पे आ जाती है”।

वे लिखते हैं कि बेगम अख़्तर से उनका परिचय तब का था, जब वह गाने के लिए हैदराबाद गई थीं। निजाम ने उनकी प्रत्येक फ़रमाइश पूरी की थी। उस रसपगी महफ़िल में मैं भी था। क्या गाया था अख़्तरी ने। वैसी गायकी फिर कभी नहीं सुनी। एक के बाद एक तोहफे आते गए। अंत में निजाम ने पूछा, और कुछ ?
‘जी’ बेगम अख़्तर ने सोचा ऐसी चीज मांगे, जो उस शाही दरबार में तत्काल पेश न की जा सके, ‘आंवले का मुरब्बा’ उन्होंने कहा और पलक झपकते ही बड़ी-बड़ी बेहंगियों में अमृतबान लटकाए पेशदारों ने तत्काल मनचाही फ़रमाइश पूरी करके दिखा दी। ऐसे न जाने कितने किस्से हैं जो बेगम साहिबा की शान में चार चांद लगाते हैं।

शोहरत की एक अलग ही दुनिया बसा ली थी उनकी आवाज ने, मगर एक वक्त ऐसा भी था जब उनके संगीत के शौक पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई। इस गम में वह बिल्कुल मरने-मरने को हो गईं तो फिर मजबूरी में उनके पति ने उन्हें रेडियो से गाने की इजाजत दे दी और उसके बाद जो हुआ वह एक इतिहास है।

‘वो जो हम में तुम में करार था’, ‘मेरे हमनफ़स मेरे हमनवां’, ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया’, ‘इश्क में गैरत-ए- जज़्बात’ जैसी कई ग़ज़लें और ‘हमार कहिन मानो राजा जी’, ‘कोयलिया मत कर पुकार’, ‘हमारी अटरिया पे आओ’ … जैसी अनमोल शास्त्रीय भेंटे इस जमाने के नाम कर जाने वाली बेमिसाल हस्ती पद्मश्री, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी से सम्मानित बेगम अख़्तर साहिबा का जन्मदिन था कल।
‘कोयलिया तू फिर कर पुकार’ !

प्रतिभा की कलम से

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