Thu. May 29th, 2025

हम उन चीजों को सँभालने की कोशिश में लगे हैं, जो सदा एक जैसी नहीं रह सकती …

भगवद चिन्तन … परिवर्तन

श्रीमद भगवद्गीता जी कहती हैं, जरा को जरूर जानों। जरा माने मिटना, छीजना, ह्रास होना। कोई भोर ऐसी नहीं जो शाम न हो, कोई शाम ऐसी नहीं जो भोर न हो। कोई रात ऐसी नहीं जो प्रभात पैदा न करे। परिवर्तन यहाँ का नियम है। हम उन चीजों को सँभालने की कोशिश में लगे हैं, जो सदा एक जैसी नहीं रह सकती।

अवस्था भी हमारी नित्य बदल रही है। जैसे हम कल थे वैसे आज नहीं है और जैसे आज हैं वैसे कल नहीं रहेंगे। शरीर का कोई भरोसा नहीं इसलिए जो श्रेष्ठ कर्म करना चाहो वो तुरंत कर लेना, समय कभी भी किसी का इंतज़ार नहीं करता ।

विचारों की भी अराजकता हमारे भीतर चल रही है। रोज नए विचार, नए उद्देश्य, नई दौड़। तुम स्वयं भी तो अपने भीतर हो रहे परिवर्तन को देख रहे हो। तुम भी तो नित बदल रहे हो, फिर दूसरों के बदल जाने पर क्रोध क्यूँ करते हो?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *