खुद से न मिटे तृष्णा तो कृष्णा से प्रार्थना करो, कृष्णा का आश्रय ही ख़तम कर सकता है तृष्णा
भगवद चिन्तन … तृष्णा
प्रत्येक वस्तु, पदार्थ और व्यक्ति, एक न एक दिन सबको जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। जरा (जरा माने..,नष्ट होना, बुढ़ापा या काल) किसी को भी नहीं छोड़ती।
‘तृष्णैका तरुणायते’ लेकिन, तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती सदैव जवान बनी रहती है और न ही इसका कभी नाश होता है। घर बन जाये यह आवश्यकता है, अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा? दो-तीन घर होने चाहियें, बस इसी का नाम तृष्णा है।
तृष्णा कभी ख़तम नहीं होती। विवेकवान बनो, विचारवान बनो, और सावधान होओ। खुद से न मिटे तृष्णा तो कृष्णा से प्रार्थना करो। कृष्णा का आश्रय ही तृष्णा को ख़तम कर सकता है।
‘ख्वाव देखे इस कदर मैंने
पूरे होते तो कहाँ तक होते’