Sun. May 25th, 2025

भगवद् चिंतन: कर्मयोगी बनो मगर कर्मफल का सदैव त्याग करो

भगवद् चिंतन … कर्मयोग

कर्मयोगी बनो मगर कर्मफल का सदैव त्याग करो, ये भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्वपूर्ण और प्रमुख सीखों में एक है। जब हमारे भीतर कर्ता भाव आ जाता है और हम ये समझने लगते हैं कि ये कर्म मैंने किया तो निश्चित ही उस कर्मफल के प्रति हमारी सहज आसक्ति हो जायेगी।

अब हमारे लिए कर्म नहीं अपितु फल प्रधान हो जायेगा। अब इच्छानुसार फल प्राप्ति ही हमारे द्वारा संपन्न किसी भी कर्म का उद्देश्य रह जायेगा। ऐसी स्थिति में जब फल हमारे मनोनुकूल प्राप्त नहीं होगा तो निश्चित ही हमारा जीवन दुख, विषाद और तनाव से भर जायेगा।

इसके ठीक विपरीत जब हम अपने कर्तापन का अहंकार त्याग कर इस भाव से सदा श्रेष्ठ कर्मों में निरत रहेंगे कि करने-कराने वाला तो एकमात्र वह प्रभु है। मुझे माध्यम बनाकर जो चाहें मेरे प्रभु मुझसे करवा रहे हैं। अब परिणाम की कोई चिंता नहीं रही।

अब जीत मिले या हार, सफलता मिले अथवा असफलता, किसी भी स्थिति में हमारा मन विचलित नहीं होगा और एक अखंडित आनंद की अनुभूति हमें सतत होती रहेगी। जब कर्म करने वाला मैं ही शेष नहीं रहा तो परिणाम के प्रति आसक्त रहने वाला मैं कहाँ से आयेगा? बस यही तो जीवन का कर्म योग कहलाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *