भगवत चिंतन: जीव मात्र के कल्याण के लिए होता है महापुरुषों का अवतरण
भगवत चिंतन … शिवोऽहम्
यह भारत भूमि संतों की भूमि रही है। आज के दिन वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी को भी इस धरा धाम पर दो महान आत्माओं का अवतरण हुआ। एक थे आदि गुरु श्रीमद् शंकराचार्य जी महाराज, तो दूसरे थे महान संत सूरदास बाबा जी महाराज।
दोनों ने इस भारतवर्ष पर बड़ा उपकार किया और अपने-अपने समय में अपने-अपने तरीके से इस जीव के उद्धार और कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।
जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी जी ज्ञानमार्गीय होने के कारण निर्गुण स्वरूप के उपासक थे तो सूरदास बाबा जी प्रेममार्गीय होने के कारण सगुण स्वरूप के उपासक थे। एक ने ज्ञान मार्ग द्वारा उस प्रभु तक पहुँचने का मार्ग बताया तो एक ने प्रेम मार्ग द्वारा उस प्रभु तक पहुंचने का मार्ग बताया।
एक ने” शिवोऽहम् – शिवोऽहम्” अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ का उद्घोष किया तो एक ने ‘मेरो मन अनंत कहाँ सुख पावे’ के भाव से उस प्रभु की शरणागति को स्वीकार किया। एक ने कहा कि मैं ब्रह्म के अलावा कुछ नहीं, तो दूसरे ने कहा कि मेरा ब्रह्म के अलावा कुछ भी नहीं। एक ने उद्घोष किया कि मैं ब्रह्म हूँ तो दूसरे ने निवेदन किया कि मैं ब्रह्म का हूँ।
भगवान शंकर ने जीव को जगाने के लिए आवाज लगाई कि –
पुनरपि जननं पुनरपि मरण,पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे, कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥
भजगोविंदम् भजगोविंदम् भजगोविंदम् मूढ़मते!
तो सूरदास बाबा ने जीव को जगाने के लिए आवाज लगाई और कहा कि –
भजु मन चरन संकट हरन।
सनक संकर ध्यान लावत, सहज असरन सरन।
सूर प्रभु चरणारविंद तें नसै जन्म जन्म अरु मरन।
महापुरुषों का अवतरण तो जीव मात्र के कल्याण के लिए ही इस धरा धाम पर होता है। सनातन धर्म को संपूर्ण भारतवर्ष में जिस तरह से जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी जी ने स्थापित और प्रतिष्ठित किया, वह अद्वितीय है। तो कृष्ण भक्ति का जो जनजागरण अभियान सूरदास बाबा ने चलाया वह भी अनुपम ही है।
भगवान शंकर ने अपने ज्ञान, तप और त्याग से भूमंडल पर दिग्विजय की तो सूरदास बाबा ने अपने प्रेम, भक्ति और समर्पण से।
दोनों ब्रह्मस्वरूप, भगवद्स्वरूप महापुरुषों के श्री चरणों में कोटि-कोटि भावपूर्ण नमन करते हुए जगद्गुरु आदि शंकराचार्य स्वामी जी व भक्त शिरोमणि सूरदास बाबा जी के पावन प्राकट्य उत्सव की आप सभी को अनंत-अनंत *शुभकामनाएं एवं मंगल बधाइयाँ।