भगवत चिंतन: धर्म के मार्ग पर कष्ट हो सकता है मगर अहित कभी नहीं हो सकता
भगवद् चिंतन … शरणागति
अपने शरणागत जीव को प्रभु हर प्रकार के अनिष्ट से बचा लेते हैं। ऐसी बात भी नहीं है कि प्रभु आश्रित जीव के जीवन में कभी कोई कष्ट ही नहीं आता। सच बात तो ये है कि प्रभु आश्रित जीव धर्म पथ का अनुगमन करता है और जो धर्म पथ का अनुगमन करता है, उसकी राह कभी भी आसान नहीं होती।
ये प्रभु शरणागति की महिमा ही है कि दुर्गम परिस्थितियों में भी शरणागत के मन में विश्वास और सकारात्मकता सदैव बनी रहती है और वो ये कि मेरे प्रभु मेरे साथ ही हैं फिर मैं चिंता क्यों करुं? उनका यह विश्वास ही उन्हें पाण्डवों की तरह बड़े से बड़े विघ्न से भी लड़ने का आत्मबल प्रदान कर देता है।
खेलत बालक ब्याल संग, मेला पावक हाथ। तुलसी सिसु पितु मातु ज्यों, राखत सिय रघुनाथ।
जिस प्रकार एक अबोध बालक निर्भय होकर सर्प के संग खेलने लगता है और अग्नि में भी हाथ डालने लगता है। वो नहीं जानता कि इसमें मेरा तनिक भी अहित होने वाला है। मगर उसके माता-पिता अच्छे से जानते हैं कि किसमें उनके बालक का हित है और किसमें अहित।
इसी प्रकार इस जीव को भले ही नहीं पता हो कि किसमें उसका हित है और किसमें अहित फिर भी उस प्रभु को सबकुछ पता है और माता पिता की भांति ही माँ जानकी और प्रभु श्री राम अपने शरणागत की रक्षा करते हैं, उसे हर प्रकार के अनिष्ट से भी बचा लेते हैं। प्रभु शरणागति अथवा धर्म के मार्ग पर आपको कष्ट जरूर हो सकता है मगर आपका अहित कभी नहीं हो सकता।