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भगवत चिंतन: निंदा और आलोचना से देवता नहीं बच पाये तो हम क्या चीज हैं …

भगवद् चिंतन … दृष्टिकोण 

आपके द्वारा संपन्न किसी भी कार्य का मुल्यांकन लोगों द्वारा दो तरह से होता है। एक लोग जो उससे कुछ सीखते हैं और दूसरे जो उसमें कुछ गलती निकालते हैं। इस दुनिया में सदा सबको एक साथ संतुष्ट करना कभी किसी के लिए भी आसान और संभव नहीं रहा।

भगवान सूर्य नारायण उदित होते हैं तो कमल के पुष्प प्रसन्न होकर खिल खिलाने लगते हैं। वहीं, दूसरी ओर उलूक पक्षी आँख बंद करके बैठ उसी मंगलमय प्रभात को कोसने लगता है, कि ये नहीं होता तो मैं स्वच्छंद विचरण करता।

नदी जन-जन की प्यास बुझाकर सबको अपने शीतल जल से तृप्ति प्रदान करती है। मगर, कुछ लोगों द्वारा नदी को ये कहकर कभी-कभी दोष भी दिया जाता है कि नदी का ये प्रवाह न होता तो कई लोग डूबने से बच जाते।

हताश और निराश होने के बजाय ये सोचकर आप अपना श्रेष्ठतम, सर्वोत्तम और महानतम सदा समाज को देते रहने के लिए प्रतिबद्ध रहें कि निंदा और आलोचना से देवता नहीं बच पाये तो हम क्या चीज हैं …

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