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अहिंसा केवल आचार में ही नहीं, विचार और बोली में भी जरूरी

भगवद चिन्तन … अहिंसा

अहिंसा का मतलब केवल किसी के प्राणों का रक्षण ही नहीं, किसी के प्रण का और किसी के सिद्धांतों का रक्षण करना भी है। अहिंसा अर्थात वो मानसिकता जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार हो।

किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा का कर्म करने का अधिकार मिले चाहे न मिले। लेकिन, अपनी इच्छा को अभिव्यक्त करने का अधिकार जरूर होना चाहिए। अहिंसा का सम्बन्ध किसी के शरीर को आघात पहुँचाने से ही नहीं, बल्कि किसी के हृदय को आघात पहुँचाने से भी है।

अपने कटु व्यवहार से किसी को आहत करना तो हिंसा है ही मगर, साथ ही आपके कटु व्यवहार से कोई अपने विचार भी आपके सामने व्यक्त न कर सके यह भी एक प्रकार से हिंसा ही है। दूसरों के अधिकारों के हनन को भी शास्त्रों में हिंसा ही बताया गया है।

किसी के दिल को दुखाना भी बहुत बड़ी हिंसा है। गोली से तो शरीर जख्मी होता है। आदमी की खराब बोली से आत्मा तक हिल जाती है। अतः अहिंसा केवल आचार में ही नहीं अपने विचार और बोली में भी रखना परमावश्यक है l

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