सकारात्मक दृष्टि सुख की जननी तो नकारात्मक दृष्टि दुख व विषाद का कारण
भगवद् चिंतन … सकारात्मकता
अगर आप दुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा दुखी रहेंगे और सुख पर ध्यान देंगे तो हमेशा सुखी रहेंगे। क्योंकि, यह जीवन का शाश्वत नियम है कि आप जिस पर ध्यान देंगे वही चीज सक्रिय हो जाती है।
यदि दो पेड़ों को एक साथ लगाया जाए। लेकिन, देख-रेख एक ही पेड़ की, की जाए, एक ही पेड़ का ध्यान रखा जाए और समय-समय पर खाद पानी भी उसी एक पेड़ को दिया जाए तो सीधी सी बात है कि जिस पेड़ पर ध्यान दिया जाएगा वही अच्छे से पुष्पित और फलित हो पायेगा। ठीक ऐसे ही सुख पर ध्यान केंद्रित करोगे तो जीवन में सुख की ही वृद्धि पाओगे और दुख पर ध्यान केंद्रित करोगे तो जीवन में दुख ही दुख प्राप्त होंगे।
विज्ञान ने भी इस बात को सिद्ध किया है कि जीवन में जिस वस्तु की हम उपेक्षा करने लगते हैं वो वस्तु धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खोना शुरू कर देती हैं। भले ही वो प्रेम हो, करुणा हो, जीवन का उल्लास हो अथवा सुख ही क्यों न हो।
जहाँ सकारात्मक दृष्टि जीवन में सुख की जननी होती है। वहीं, नकारात्मक दृष्टि जीवन को दुख और विषाद से भर देती है। इसलिए जीवन में सदा सकारात्मक दृष्टि ही रखी जानी चाहिए ताकि व्यक्ति के दुख और विषाद जैसे काल्पनिक शत्रुओं का समूल नाश हो।