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केवल स्वयं के लिए नहीं अपितु समष्टि के लिए जीना सीखो

भगवद चिन्तन … श्रेष्ठ कर्म 

अच्छे कार्य करने से ही व्यक्ति महान बनता है। विचारात्मक प्रवृत्ति रचनात्मक जरूर होनी चाहिए। जिस दिन शुभ विचार सृजन का रूप ले लेता है, उस दिन परमात्मा भी प्रसन्न होकर नृत्य करने लगते हैं।

कुछ ऐसा करो कि समाज की उन्नति हो। समाज स्वस्थ, सदाचारी बनकर उन्नति के मार्ग पर चले जिससे सबका भला हो। वेद यही तो कहते हैं, जब हर प्रकार से आप अपना कल्याण कर लें तब धन के, भोग के पीछे मत भागना। मैंने दुनिया से बहुत लिया अब देने की बारी है। अब लेने के लिए नहीं देने के लिए जीना। मत भूलो ये जीवन अस्थायी है। इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षण का सम्मान करो।

मृत्यु आ जाएगी तो कुछ भी न रहेगा। न यह शरीर, न इच्छाएं, न कल्पनाएँ , न धन। हर चीज तुम्हारे साथ यही समाप्त हो जाएगी । इसलिए केवल स्वयं के लिए नहीं अपितु समष्टि के लिए जीना सीखो।

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