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जिन्दगी होश में जिओ, होड़ में नहीं… त्यागो मत्सर भाव

भगवद चिन्तन
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सच मानिये आज आदमी अपने दुःख से कम और दूसरों के सुख से ज्यादा दुःखी है। आज आदमी इसलिए दुखी नहीं कि उसके पास कम है अपितु इसलिए दुखी है कि दूसरे के पास अधिक है।

शास्त्रों ने इसे ‘मत्सर’ भाव कहा है। यह मत्सर भी मच्छर की तरह खून चूसता है। लेकिन, दोनों में एक अंतर यह है कि मच्छर दूसरे का खून चूसता है और मत्सर स्वयं का। दूसरों को देखकर जीना खुद को दुखाकर जीने जैसा है।

किसी क़ी खुशी को देखकर जलना उस मशाल की तरह जलना है, जिसे दूसरों को खाक करने से पहले स्वयं को राख़ करना पड़ता है। आपके पास जो है वह निसंदेह पर्याप्त है।

जो है उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दो, जो नहीं मिला उसके लिए किसी को दोष देने के बजाय अपनी योग्यता को बढ़ाओ। आपके लिए शर्त मात्र इतनी कि दूसरे के पास कितना है यह देखना बंद किया जाए।
जिन्दगी होश में जिओ, होड़ में नहीं।

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