डमरू मतलब आनंद और त्रिशूल मतलब वेदना दोनों एक-दूसरे के विपरीत
भगवद चिन्तन… श्रावण मास शिव तत्व
भगवान शिव का स्वरूप देखने में बड़ा ही प्रतीकात्मक और सन्देशप्रद है। हाथों में त्रिशूल यानी तीनों ताप दैहिक, दैविक और भौतिक को धारण किए हैं। लेकिन, यह क्या हाथों में त्रिशूल और त्रिशूल पर भी डमरू? डमरू मतलब आनंद और त्रिशूल मतलब वेदना दोनों एक-दूसरे के विपरीत।
जीवन ऐसा ही है। यहाँ वेदना तो है ही लेकिन, आनंद भी कम नहीं। आज आदमी अपनी वेदनाओं से ही इतना ग्रस्त रहता है कि आनंद उसके लिए मात्र एक काल्पनिक वस्तु बनकर रह गया है। दुखों से ग्रस्त होना यह अपने हाथों में नहीं लेकिन, दुखों से त्रस्त होना यह अवश्य अपने हाथों में है। भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल और उसके ऊपर लगा डमरू हमें इस बात का सन्देश देता है कि भले ही त्रिशूल रूपी तापों से तुम ग्रस्त हों लेकिन, डमरू रूपी आनंद भी साथ होगा तो फिर नीरस जीवन भी उत्साह से भर जाएगा।