क्लेश की, कलह की स्थितियों से विवेकपूर्वक बचते रहो…
भगवद चिन्तन
औषधि केवल रोग निवृत्ति के लिए होती है, स्वास्थ्य के लिए नहीं। स्वास्थ्य तो उपलब्ध है। साबुन से कपडे में कभी भी चमक नहीं आती, साबुन केवल कपडे पर लगी गंदगी को साफ करता है। इसी प्रकार शांति के लिए हमें कोई प्रयत्न नहीं करना, वह तो प्राप्त ही है। आनन्द तो नित्य है, सहज है, मिला हुआ ही है।
अशांति देने वाले, विषाद देने वाले कर्मों से हमें बचना है। जिस प्रकार रोड़ पर चलते समय हमें स्वयं गाड़ियों से बचना पड़ता है। लेकिन, इस नियम को हम जीवन में और बहुत जगह पर लागू नहीं करते हैं।
क्लेश की, कलह की स्थितियों से विवेकपूर्वक बचते रहो। वो उत्पन्न होंगी और रोज नए-नए रूप में आएँगी। जिस प्रकार एक कुशल नाविक तेज धार में समझदारी से अपनी नाव को किनारे लगा देता है, उसी प्रकार आप भी समझदारी पूर्वक जीवन रुपी नाव को शांति और आनंद के किनारे पर रोज पहुँचाओ।