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रक्तबीज कुछ और नहीं हमारी कामनाएँ ही हैं…

भगवद चिन्तन

माँ दुर्गा द्वारा रक्तबीज असुर का जिस तरह से नाश किया जाता है, वह बड़ा ही प्रतीकात्मक व संदेशप्रद है। यह रक्तबीज कुछ और नहीं हमारी कामनाएँ ही हैं, जो एक के बाद एक जन्म लेती रहती हैं। एक इच्छा पूर्ण हुई कि दूसरी और तीसरी अपने आप जन्म ले लेती हैं।

हम निरंतर इनसे संघर्ष भी करते रहते हैं, मगर निराशा ही हाथ लगती है क्योंकि हमारे अधिकतर प्रयास इच्छापूर्ति की दिशा में होते इच्छासमन (विनाश) की दिशा में नहीं। रक्तबीज तब तक नहीं मरता जब तक उसके रक्त की एक भी बूँद बाक़ी रहती है।

ऐसे ही हमें हमारी अकारण की इच्छाओं और कामनाओं को पी जाना होगा, जो हमें व्यर्थ में दुःखी और परेशान करती रहती हैं। कामनाओं को पी जाना अर्थात उन्हें विवेकपूर्वक और बलपूर्वक नियंत्रित करना है।

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