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लोग आपके बारे में क्या सोचते है? यह ज्यादा विचारणीय नहीं

भगवद चिन्तन

निराशा अर्थात सफलता की दिशा में अपने बढ़ते हुए क़दमों को रोककर परिस्थितियों के आगे हार मान लेना है। निराशा का मतलव मनुष्य की उस मनोदशा से है जिसमें स्वयं द्वारा किए जा रहे प्रयासों के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो जाता है।

निराशा जीवन और प्रसन्नता के बीच एक अवरोधक का कार्य करती है। क्योंकि, जिस जीवन में निराशा, कुंठा, हीनता आ जाए वहाँ सब कुछ होते हुए भी व्यक्ति दरिद्र, दुखी और परेशान ही रहता है।

लोग आपके बारे में क्या सोचते है? यह ज्यादा विचारणीय नहीं है। आप अपने बारे में क्या सोचते हैं यह महत्वपूर्ण है। स्वयं की क्षमताओं पर, प्रयासों पर और स्वयं पर भरोसा रखो। दुनिया की कोई भी चीज ऐसी नहीं जो मनुष्य के प्रयासों से बड़ी हो। निराशा में नहीं प्राप्त्याशा में जिओ। न जीवन बार-बार मिलता है और न जवानी वापिस आती है और न ही बीता समय कभी आता है। जीवन के प्रत्येक पल का उत्सव मनाओ।

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