तितिक्षा ही तो साधु का और श्रेष्ठ पुरुषों का आभूषण है…
भगवद चिन्तन
जीवन में सम्मान इच्छा और भिक्षा से नहीं अपितु तितिक्षा (सहनशीलता) से जरूर प्राप्त होता है। जीवन को सम्मानीय बनाने की चाहना की अपेक्षा उसे सहनशील बनाने का प्रयास अधिक श्रेयस्कर है।
श्रीमदभागवत जी कहती हैं कि महान वो नहीं जिसके जीवन में सम्मान हो अपितु वो है जिसके जीवन में सहनशीलता हो क्योंकि, सहनशीलता अथवा तितिक्षा ही तो साधु का और श्रेष्ठ पुरुषों का आभूषण है।
सम्मान मिलना बुरी बात भी नहीं। मगर, मन में सम्मान की चाह रखना अवश्य श्रेष्ठ पुरुषों के स्वभाव के विपरीत है। किसी के जीवन की श्रेष्ठता का मूल्यांकन इस बात से नहीं होता कि उसे कितना सम्मान मिल रहा है अपितु इस बात से होता है कि वह व्यक्ति कितने सम्मान से जी रहा है।
सम्मान में नहीं, सम्मान से जीना महत्वपूर्ण है।