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अधिकारों की जानकारी होनी ही चाहिए, मगर कर्तव्यों की जानकारी भी जरूर होनी चाहिए..

भगवद् चिंतन 

अधिकार की लड़ाई तो दुनिया लड़ती ही है। लेकिन, इतिहास में गिने चुने प्रसंग मिलते हैं जब कर्तव्य की लड़ाई लड़ी गई हो। पाने के लिए बहुत सारे युद्ध लड़े गये। मगर, त्याग के लिए भी यहाँ प्रतिस्पर्धाएं हुई हैं। प्रभु राम का जीवन दर्शन उन्हीं प्रतिस्पर्धाओं में से एक है। कर्तव्यों के निर्वहन की प्रतिस्पर्धा की कथा का ही नाम तो राम कथा है। आदमी को अपने अधिकारों की जानकारी तो होनी ही चाहिए मगर कर्तव्यों की जानकारी भी जरूर होनी चाहिए।

एक आदर्श मानव बनने के लिए अधिकार नहीं, कर्तव्य जरूरी होते हैं। अगर, आप एक बेटे हैं तो आपको अपने माँ-बाप के प्रति, अगर आप एक पति हैं तो आपको अपनी पत्नी के प्रति, अगर आप एक भाई हैं तो आपको अपने भाई के प्रति, अगर आप एक पत्नी हैं तो आपको अपने पति के प्रति और अगर आप एक बहु हैं तो आपको अपने सास-ससुर के प्रति अपने अधिकारों से भी ज्यादा अपने कर्तव्यों का पता होना चाहिए।

जिस घर के लोग अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहते हैं, उस घर में निश्चित ही स्वर्ग उतर आता है। अपने कर्तव्यों का भान प्रत्येक व्यक्ति को हर हाल में होना ही चाहिए, चाहे उसका पद और कद कितना भी बड़ा क्यों न रहे। कर्तव्य हमें हमारी जिम्मेदारियों के प्रति जिम्मेदार बनाते हैं। हम अपने कर्तव्यों से बचते गये, परिणाम स्वरूप संयुक्त परिवार की अवधारणा भी खत्म होती गयी।

केवल अधिकारों के ज्ञान ने हमारे भीतर लेने की प्रवृत्ति का उदय कर दिया और केवल लेने की प्रवृत्ति ने किसी भी संबंध के प्रति हमारे नजरिए को ही बदल दिया। संबधों को बचाना है तो ये बात बहुत जरूरी हो जाती है कि हमारे भीतर लेने का ही नहीं, देने का भाव भी अवश्य होना चाहिए। राम कथा यही सब तो सिखाती है…

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