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धैर्य के समान आत्मबल प्रदान करने वाला कोई दूसरा मित्र नहीं…

भगवद् चिंतन

भक्ति हमें धैर्य प्रदान करती है। जिस जीवन में प्रभु की भक्ति नहीं होगी, निश्चित समझिए उस जीवन में धैर्य नहीं पनप सकता। भक्त इसलिए प्रसन्नचित्त नहीं रहते कि उनके जीवन में विषमताएं नहीं रहती हैं। अपितु, इसलिए प्रसन्नचित्त रहते हैं कि उनके जीवन में धैर्य रहता है। किसी भी प्रकार की विषमताओं से निपटने के लिए अपने इष्ट अपने आराध्य का नाम व विश्वास होता है।

भक्त के जीवन में परिश्रम तो बहुत होता है। मगर परिणाम के प्रति ज्यादा उतावलापन नहीं होता है। वो इतना जरूर जानता है कि मेरे हाथ में केवल कर्म है उसका परिणाम नहीं। मैंने कर्म को पूरी निष्ठा से करके अपना कार्य पूरा किया, अब आगे परिणाम जैसे मेरे प्रभु को अच्छा लगेगा वही आयेगा।

विपरीत से भी विपरीत परिस्थितियों में भी अगर कोई हमें मुस्कुराकर जीना सिखाता है तो वो केवल और केवल हमारा धैर्य ही है। धैर्य के समान आत्मबल प्रदान करने वाला कोई दूसरा मित्र नहीं।

संतो की संगति का अब ये असर हुआ,
पहिले हँसते हुए भी रोते थे
अब भीगे दामन में भी मुस्कुराते हैं।

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