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जिस जीवन में जितना परिश्रम, संघर्ष रहेगा वो उतना ही वंदनीय और श्रेष्ठ बनेगा…

भगवद् चिंतन

संघर्ष वो वृक्ष है जिसकी जडें कड़वी जरूर होती हैं मगर, उसके फल बड़े ही मधुर होते हैं। जिस जीवन में आज जितनी मधुरता है उस जीवन में कभी उतना ही संघर्ष भी रहा होगा। अक्सर हम लोग मधुर फल तो चाहते हैं मगर, संघर्ष रूपी कड़वाहट का स्वाद नहीं लेना चाहते हैं। तब हम ये भूल जाते हैं कि जीवन की मधुरता की जड़ संघर्ष है। जो इस कड़वाहट से बचने की कोशिश करते हैं, वो जीवन की मधुरता से भी वंचित रह जाते हैं ।

जिसके जीवन का संघर्ष जितना बड़ा होगा उसके जीवन में उतनी मिठास होगी। पहले संघर्ष और फिर मिठास यही तो जीवन का नियम है। भगवान श्री राम के संघर्षों ने उन्हें जन-जन का प्रिय प्रभु राम बना दिया तो श्रीकृष्ण के संघर्षों ने उन्हें महानायक बना दिया।

एक फल को अपने भीतर मिठास लाने के लिए बहुत ही कठिन परीक्षा से गुजरना पड़ता है। अनेक आँधी, तूफान, झंझावात और तप्त दोपहरी व सर्द रातों की विषमताओं को चुपचाप सहने के बाद कहीं जाकर वह परिपक्व और मीठा बनता है। ऐसे ही जिस जीवन के प्रारंभ में जितना परिश्रम, जितना संघर्ष रहेगा वो जीवन उतना ही वंदनीय और श्रेष्ठ बन जायेगा।

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