आपका विषाद, प्रसाद बन जाये… यही तो गीता की सीख है…

भगवद चिन्तन, गीता जयन्ती
जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसे गीता ने स्पर्श न किया हो। जीवन की ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका समाधान गीता से न प्राप्त किया जा सके। जीवन जीने की दिव्यतम-भव्यतम कल्पना का साकार रूप है गीता। गीता, अर्जुन के समक्ष अवश्य गाई गई मगर इसका उद्देश्य बहुत दूरगामी था।
गीता गाई गई ताकि हम जी सकें। लाभ-हानि में, सुख-दुःख में और सम-विषम परिस्थितियों में भी प्रसन्न रह सकें। गीता ने कर्म के अति रहस्यमय सिद्धान्त को स्पष्ट करते हुये कहा कि भावना की शुद्धि ही कर्म की शुद्धि है। महत्वपूर्ण ये नहीं कि आप क्या करते हैं? अपितु यह है कि किस भाव से करते हैं।
आज आदमी जीवन की बहुत सी समस्याओं से पीड़ित है। जिनके पास सुख साधन है वो दुखी और जिनके पास नहीं है वो भी दुखी। यद्यपि यहाँ हर मर्ज की दवा है मगर समस्या यहाँ पर आती है कि मर्ज क्या है? गीता रोग भी बताती है और दवा भी बताती है। आपका विषाद, प्रसाद बन जाये यही तो गीता की सीख है।
गीता सुनें- गीता चुनें। गीता पढ़ें- आगे बढ़ें।
गीता जयन्ती की आप सबको बधाई