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कर्म से अच्छे और हृदय से सच्चे बनें!

भगवद् चिंतन

नारद जी हो, ध्रुव जी हो, प्रह्लाद जी हों या फिर पाण्डव हों, जिस पर भी उस प्रभु की कृपा हुई है, उसका जीवन वंदनीय अवश्य हुआ है।

जिस प्रकार किसी धातु के बर्तन को सही आकार देने के लिए, उसके मोल और उपयोगिता बढ़ाने के लिए उसे अनेक बार अग्नि में डाला जाता, पीटा जाता है। उसी प्रकार भक्त को भी अनेक दुखों व प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ता है। ताकि, वह निखर सके और उसका जीवन भी अनमोल और वंदनीय बन सके।

हमें सतत प्रयास करना चाहिए कि हमारा जीवन प्रभु कृपा का पात्र बन सके। हमारी सरलता, हमारी सहजता, हमारी निष्कपटता और विकट से विकट परिस्थितियों में भी उस प्रभु का सुमिरन व उसके ऊपर विश्वास ही हमें उनका कृपा पात्र बनाता है।

जा पर कृपा राम की होई।
ता पर कृपा करे सब कोई।।

प्रभु की कृपा जिसके ऊपर हो जाती है, उसके ऊपर बाकी सब की कृपा भी हो जाती है। फिर एक समय यह भी अवश्य आता है, जब उसके लिए समस्त सृष्टि अनुकूल हो जाती है। उसके लिए काँटे भी फूल जैसे कोमल और शत्रु भी मित्र हो जाते हैं।

प्रभु की कृपा हो तो एक दासी पुत्र भी देवर्षि नारद बन जाते हैं। कर्म से अच्छे और हृदय से सच्चे बनें! प्रभु कृपा के पात्र अवश्य बन जाओगे।

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