अन्यथा त्रिलोकी में भी शरण देने वाला कोई नहीं मिलेगा …
भगवद् चिंतन
भक्त का संग जरूर करो मगर भक्त का अपराध अथवा तिरस्कार करने से सदैव बचते रहो। जिस दिन हमारे हाथों से किसी भक्त का अपराध बन जाता है, वास्तव में उस दिन हमारे हाथों से स्वयं भगवान का भी अपराध हो जाता है।
भक्तों के संग से ही जीवन कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। भक्त का संग ही तो हमें सत्संग व श्रेष्ठ कर्म तक ले जाता है। ऐसा दुनियाँ में एक भी उदाहरण नहीं, जिसने किसी भक्त का संग किया हो और उसका पतन हुआ हो अथवा जिसने भक्त का संग किया हो और उसका उत्थान न हुआ हो।
भक्त से अभिप्राय उस व्यक्ति से है जो सदैव सदाचरण में जीवन जीते हुए सतत निस्वार्थ भाव से समाज सेवा, परमार्थ, परोपकार और परहित में संलग्न रहता है। जिसके लिए न कोई अपना है और न पराया। जिसके जिए सारा जगत ही प्रभु का मंदिर और प्राणी मात्र में ही उसके प्रभु निवास करते हैं।
निसंदेह ऐसे महामानव अपने लिए न जी कर समष्टि के लिए जीवन जीते हैं। इसलिए उनका सहयोग, उनका सम्मान और उनका संग कर सको तो जरुर करना। लेकिन, कभी भी निजी स्वार्थ के लिए उनका निरादर उनके प्रति दुराग्रह की भावना मत रखना अन्यथा त्रिलोकी में भी शरण देने वाला कोई नहीं मिलेगा।