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तो फिर समझ लेना कि आपका धन नाश को प्राप्त होने वाला है …

भगवद चिन्तन

शास्त्रों में धन की तीन गतियाँ बताई गई हैं। पहली उपभोग, दूसरी उपयोग और तीसरी नाश। धन से जितना आप चाहो सुख के साधनों को अर्जित कर लो। बाक़ी बचे धन को सृजन कार्यों में, सद्कार्यों में, अच्छे कार्यों में लगाओ। अगर आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तो समझ लेना फिर आपका धन नाश को प्राप्त होने वाला है।

धन का दुरुपयोग ही तो धन का नाश है और धन का अनुपयोग भी उसका नाश ही है। दुनिया आपको इसलिए याद नहीं करती कि आपके पास बड़ा धन है अपितु इसलिए याद करती है कि आपके पास बड़ा मन है और आप सिर्फ अर्जन नहीं करते, आवश्यकता पड़ने पर विसर्जन भी करते हैं।

धन के साथ एक बड़ा विरोधाभास और है कि जब-जब आप धन को संचित करने में लगे रहते हो तब-तब समाज में आपका मूल्य भी घटता जाता है। और जब-जब आपने इसे अच्छे कार्यों में लगाने का काम किया तब-तब समाज में आपको बहुत मूल्यवान समझा जाता है।

अत: धन का संचय आपके मूल्य को घटा देता है और धन का सदुपयोग आपके मूल्य को बढ़ा देता है।

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