कर्तव्य निर्वहन से बढ़कर जीवन में और कोई साधना नहीं हो सकती
भगवद चिन्तन
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निष्ठापूर्वक अपने कर्तव्य निर्वहन से बढ़कर जीवन में और कोई साधना नहीं हो सकती। वह साधना बिलकुल भी श्रेष्ठ नहीं कही जा सकती जो कर्तव्य निर्वहन से बचने को की जाती हो। घर को छोड़कर गुफाओं में बैठ जाना बड़ी बात नहीं है, अपितु घर में रहते हुए कर्तव्य पालन करना बड़ी बात है।
वो कर्तव्य ही था जिसके लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम ने अयोध्या व भगवान् श्रीकृष्ण ने वृन्दावन का त्याग किया था। घर के लिए कर्तव्य का त्याग नहीं अपितु कर्तव्य के लिए घर का त्याग किया जा सकता है।
यदि शबरी, केवट और निषाद जैसे भक्त अपने कर्तव्य धर्म में संलग्न रहेंगे तो फिर श्रीराम को अयोध्या छोड़कर उन्हें दर्शन देने अवश्य वन में जाना पड़ेगा।