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हम खुद कितना ही झूठ बोल लें, लेकिन दूसरा बोल दे तो हमें बर्दाश्त नहीं होता …

भगवद चिन्तन

हम खुद चाहे कितना ही झूठ बोल लें, लेकिन, कोई दूसरा बोल दे तो हमें बर्दाश्त नहीं होता। हम दूसरों पर कितना भी गुस्सा कर लें। लेकिन, जब कोई हम पर गुस्सा करता है, तब हमें बड़ा बुरा लगता है। जबकि हमें स्वयं के प्रति कठोर और दूसरों के प्रति सरल होना चाहिए।

ब्रह्मा जी की सृष्टि में पूर्ण तो कोई भी नहीं है। यहाँ सब में कुछ न कुछ कमी है। सबकी सोच, सबके बिचार, सबके उद्देश्य, सबके कार्य करने का तरीका अलग- अलग है। यदि सारी दुनिया एक जैसी होती तो इसके दो ही परिणाम होते या तो दुनिया स्वर्ग होती या नरक। विविधता ही इस दुनिया को खूबसूरत बनाती है।

ज्ञानी ऐसी चेष्टाओं से मुक्त होता है। वह किसी पर अपना आधिपत्य ज़माने की कोशिश नहीं करता, न ही वह किसी से टकराता है। लोग जैसे हैं उन्हें वैसे ही स्वीकार कर लेना सबसे बड़ा ज्ञान है। बुद्ध कहते है कि सत्य का पालन स्वयं करना तो धर्म है। लेकिन, दूसरों से जबरदस्ती सत्य का पालन कराना हिंसा है।

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