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रंगोली जैसा ही होता है जीवन, इसे संवारने को प्रयासरत रहें

भगवद् चिंतन
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जीवन को जब भी जियो पूरे आनंद और उल्लास के साथ जियो! जीवन को जब उसकी समग्रता और पूर्णता में जिया जाता है तो उसका आनंद कुछ अलग ही होता है।

जब किसी त्यौहार पर घर में रंगोली सजाई जाती है, तो हमें अच्छे से पता होता है कि रंगोली दूसरे ही दिन मिटने वाली है। दूसरे दिन तो दूर की बात है, दूसरे ही क्षण मिटने वाली है। एक हल्की सी हवा चली और रंगोली कब उड़ गई पता भी नहीं चलता। थोड़ा सा पानी क्या गिरा कि रंगोली कब बह गई कुछ पता ही नहीं चलेगा।

जीवन भी तो कुछ रंगोली जैसा ही है। हमें पता है कि पद, प्रतिष्ठा, वैभव, सगे संबंधी, बचपन, यौवन और यहाँ तक कि जीवन व और जो कुछ भी हमारे पास है, एक दिन कुछ नहीं रहेगा। लेकिन, फिर भी उसे रंगोली की तरह जितना हो सके सजाने, संवारने और खूबसूरत बनाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।

कहने का अभिप्राय केवल इतना कि जितनी भी देर रहो ऊर्जावान बने रहो! जितने भी दिन रहो क्रियावान बने रहो! जितनी भी घड़ी रहो उल्लासित बने रहो! जितने भी पल रहो उत्साहित और आनंदित बने रहो! जितने भी क्षण रहो खिले-खिले और मुस्कुराते रहो! यही तो इस मानव जीवन की परिपूर्णता है।

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