भैया तुम सरहद पर रहकर तम दूर करो, मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी..
जसवीर सिंह हलधर
कवि/शाइर
देहरादून, उत्तराखण्ड
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गीत -भैया दूज
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भैया तुम सरहद पर रहकर तम दूर करो,
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी।
लगता है दुनियाँ में ईमान खो गया है,
फूलों का रंगीला परिधान खो गया है।
तुम सीमा पर संगीनों से इतिहास लिखो,
मैं घर पर रह अपना भूगोल सजाऊंगी।
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी।।1
बढ़ रही वेबसी गांव गली चौवारों में,
पशुता नंगी हो नाच रही बाजारों में।
मैं गाकर दीपक राग जगा दूंगी मुर्दे,
खुद के सक्षम होने का अर्थ बताऊंगी।
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी।।2
रो रही सभयता साहित्यक रथ रुका हुआ,
हो रहे कृत्य विध्वंस सृजन है थका हुआ।
लुट रही द्रोपदी नग्न खड़ी चौराहों पर,
मैं माधव बन कर उसकी लाज बचाऊंगी।
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी।।3
कुछ रोग लगा भारत उपवन की काया में,
दुख नाच रहा रोगी कलियों की छाया में।
तुम तोपों के संग सावन घन जैसे वर्षों,
मैं भी तलवारों से मल्हार गवाऊंगी।
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी।।4
अब स्वयं उतरना होगा अपनी रक्षा में,
दानव घुस कर बैठे संसद की कक्षा में।
तट पर रहकर उपचार असंभव है “हलधर”,
लहरों से टकराकर ही नाव चलाऊंगी ।
मैं खुद की रक्षा का व्रत आज उठाउंगी।।5
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..16/11/2020
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