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गंगा स्वरूप होने के लिए नाले को कंकर-पत्थरों से टकराना ही होता है …

भगवद् चिंतन … जीवन यात्रा

सूर्योदय के लिए सूर्य को अंधेरे से, हरियाली के लिए बसंत को पतझड़ से और गंगा स्वरूप होने के लिए एक नाले को कंकर-पत्थरों से टकराना अथवा लड़ना ही होता है। ठीक इसी प्रकार बेहतरीन व अच्छे दिनों के लिए मनुष्य को बुरे दिनों से अवश्य लड़ना पड़ता है अथवा तो बुरे दिनों का सामना करना ही पड़ता है।

प्रभु श्री राम ने लंका को जीता मगर जीतने से पहले कितनी-कितनी विषमताओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। पाण्डवों ने महाभारत युद्ध जीता अवश्य मगर उसके मूल में भी अनगिन कठिनाइयां और विपत्तियां ही छुपी हुई हैं।

निसंदेह ये जीवन यात्रा ऐसी ही है। यहाँ किसी बीज को वृक्ष बनने के लिए एक लंबी अवधि तक सर्वप्रथम जमीन में मिट्टी के नीचे दबना होता है। समय आने पर वो बीज अंकुरित तो हो जाता है मगर उसके बाद भी कभी तीखी धूप तो कभी कड़ाके की सर्दी का सामना करते हुए न जाने क्या-क्या विषमताएं अपने ऊपर झेलनी पड़ती हैं।

याद रखना दिन बुरे हो सकते हैं मगर जीवन नहीं। धैर्य, साहस, सावधानी और प्रसन्नता का कवच परिस्थितियों को भी आपका दास बना सकता है। जो डटेगा, वही टिकेगा और वही बढ़ेगा।

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