मातृ दिवस पर विशेष : भुरिया का “हैप्पी मदर्स डे”
तारा पाठक
उत्तराखंड
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आज सुबह आँख खुलते ही भुरिया ने एक बड़ा निर्णय ले लिया अपने ही उसूलों के खिलाफ। द्वि बीसी दस से एक कम की उम्र हो गई है उसकी।
भुरिया जग_सित (अर्धनिंद्रा)की स्थिति में देखता है कि_
ईजा_ज्याड़जा_नानि काखि_ठुलि काखि _पारै बोजि ये सभी दगड़ू आपस में बतिया रहे हैं, अचानक भुरिया के कान खड़े हो गए। वो कनसुणा लगने की कोशिश करने लगा। ज्याड़्जा ईजा से कह रही है__
“हंवे भुरियै मै त्यर भुरी लै बिङड़ौ बिङड़ै रैगो। जबान का्ंक कां पुजि गो (भुरिया की माँ तेरा भुरिया भी मंदबुद्धि का मंदबुद्धि ही रह गया है।लोग कितने एडवांस हो गए हैं।”)
ईजा प्रश्नात्मक नजरों से ज्याड़्जा को देखने लगी और ज्याड़्जा ने अपनी बात का खुलासा यूं किया_
“किलै तसी के चाणेंछी म्यार तरुब (क्यों ऐसी नज़रों से मुझे क्या तक रही है?)”
काखी_बोजी लोगों का ध्यान भी ज्याड़्जा की तरुब गया आखिर वो भी तो सुनें भुरिया के बिङड़्याट के बारे में। फिर ज्याड़जा का रेडू चालू हो गया_
“एतू साल हमन धरती बटी आई हैगीं, त्यार भुरियैल कभैं ‘हप्पी मदर्स डे ‘नि लगा हुन्योल (हमें धरती से आए हुए इतने साल बीत गए, तेरे भुरिया ने कभी ‘हैप्पी मदर्स डे ‘नहीं लगाया)”
ईजा क्या कहती, जब तक जिंदा थी तब जो भुरिया ने उसका कितना कहना माना होगा। अब हप्पी कहने न कहने का क्या फायदा।
नानि काखी ने कहा_
“दिज्यू हमर घान जै यास मौकों पर खूब याद करं (दीदी जी हमारा घनश्याम जो ऐसे अवसरों पर बहुत याद करता है)”। बीच में ठुलि काखी ने भी अपनी भावनाओं को सबके सामने रखा और आँचल के कोने से अपनी आँखें पोंछने लगी _
“होइ पै घनुवा भौतै मोहिल भय, आपणि मै काख लै मेरि फोटक जरूर लगूं (हां फिर घनश्याम तो बहुत ममता रखता है, अपनी माँ के बगल में मेरी फोटो भी लगाता)”
अभी तक पारै बोजी चुप थी। उसने भी अपना राग अलापना शुरू किया_
“किलैनें सासू एतू हुं हमर बिशु लै भौत भल भय। चाहे ज्यून छन नड़क_झड़क लै कर्छ्यो, उदिनन अक्कल नि हुनेलि। आब तो यास लैन लेखि राखं, जो लै पढ़न हुन्योल वीकें घौबर भरी ऊन हुन्योल। भोल हुं देखिया —– ऊंऽऽ के कूंनी बज्यूण मैंकें कूणें नि ऊंन (सासू इतने को तो हमारा विष्णु भी बहुत मायादार हुआ।चाहे जीते जी उसने झगड़ा_झुगड़ा जो भी किया, उन दिनों समझ नहीं आई होगी। अब तो ऐसे वाक्य लिखता है कि उसकी पोस्ट जो भी पढ़ता होगा उसका गला भर आता होगा। कल को देखना——ऊंऽऽवो क्या कहते हैं मुझे तो कहना ही नहीं आता )”
इतने में ज्याड़्जा बोल पड़ी_
“बिशुवै मै तु सरग त ऐगेछी पर के करछा भ्यासै कि भ्यासै रई।उधैं ‘हप्पी मदर्स डे ‘कूंनी (विष्णु की माँ तू आने को स्वर्ग तो आ गई लेकिन मूर्ख की मूर्ख ही रही। उसे ‘हैप्पी मदर्स डे’ कहते हैं)”
भुरिया अपलक देख रहा था, स्वर्ग में भी इनके वही क्वीड़ चल रहे हैं। वह ज्याड़्जा को देखकर अवाक् रह गया।इसने इतना कैसे सीख लिया। धरती पर ये जो कौन सा पंडिताइन ही थी।अपनी ईजा को खामोश देखकर उसे ज्याड़्जा पर बहुत क्रोध आने लगा।उसकी मुट्ठियां भिंच गई। जोर से जमीन पर मुक्का मारा और भुरिया की नींद खुल गई। वह पसीने से लथपथ हो रहा था। उसे अपने स्वैंण को लेकर संशय हुआ। कितनी बार अपने बदन में चिउंटी काट दी। वह स्वैंण से बाहर आना चाह रहा था। लेकिन, आँखों में पितृ मंडली और कानों में उनकी अजीबोगरीब वार्ता अब भी गूंज रही थी। भुरिया का गला सूख रहा था, पानी पीने की एवज में उठा तो उसका सिर चकरा रहा था।
पानी पीने के बाद उसे थोड़ा चैन आया लेकिन स्वैंण था कि पीछा नहीं छोड़ रहा था। वह स्वैंण न होकर उसके लिए बड़वौ जाव (मकड़ी का जाला) हो गया था। जितना निकलने कोशिश की करता और उलझता जाता। ईजा का मुरझाया चेहरा जैसे उसकी आँखों में अटक सा गया था। उसने ईजा की आँखों में चमक लाने के लिए अपने स्टेटस पर, फेसबुक पर ‘हैप्पी मदर्स डेजेड’ लगाने के लिए मोबाइल उठा लिया। अभी भी उसके अंदर चौमासी गधेरे का जैसा खतबताट मचा हुआ है। वह सोच रहा है _पितरों को कैसे पता चलता होगा। क्या पिंडदान की तरह ही अब मोबाइल पर पोस्ट दान भी जरूरी हो गया है? ये भी स्वर्ग में सीधे पितरों तक पहुंचता होगा।
उसके अंतर्मन ने उसे गरुड़ पुराण सुनाना शुरू कर दिया _
जीवात्मा स्थूल शरीर से तो मुक्ति पा जाती है। लेकिन, सूक्ष्म शरीर में हमारे आसपास विद्यमान रहती है। हम श्रद्धा से जो भी उन्हें अर्पित करते हैं वो उसका सारांश पा लेते हैं। इसीलिए श्राद्ध_तर्पण आदि क्रियाएं की जाती हैं।
यूं तो भुरिया का मानना था_
“ज्यून पितर मारे लात, मरी पितर दाल_भात”। जब तक जिंदा थे, माँ_बाप की कोई कद्र नहीं की। अब हैप्पी कहने से वो खुश होंगे क्या।
अंतर्मन ने भुरिया को फिर उपदेश देना शुरू कर दिया _मनुष्य सामाजिक प्राणी है, जैसा समाज में चलता है उससे विमुख कितने दिन तक रहा जा सकता है। एक पोस्ट फोटो सहित लगाने में कोई हानि तो नहीं है।
मैं अपने उसूलों के खिलाफ कैसे जा सकता हूंँ। उनके जीते जी सेवा नहीं कर पाया, अब मोबाइल पर नाटक करने से क्या होगा। वैसे भी स्वैंण तो वही आते हैं जो हमारे मन में चल रहा होता है। आज ‘मदर्स डे’ है तो रात से ही दिमाग में ये बात आई होगी।
फिर अंतर्मन ने झिंझोड़ा_इसमें तेरा नुकसान तो कुछ नहीं है ना। जिस माँ की वजह से तेरा अस्तित्व है, उस माँ ने तो नहीं सोचा कि इसके जन्म होने से मुझे जान का जोखिम उठाना पड़ेगा। तू उसके चेहरे पर चमक लाने को एक पोस्ट नहीं लगा सकता?
भूरिया रेत के टीले की तरह ढह गया, उसकी आँखों से अश्रु धारा बहने लगी और उसने ईजा_ज्याड़्जा सहित जितने भी मातृ देवों का फोटो मिला अपनी फेसबुक वॉल पर, स्टेटस पर लगा दिया। वह अंदर से बहुत हल्का महसूस कर रहा था और उसे लग रहा था जैसे उसने पितृ ऋण की एक किस्त चुका दी है।
भुरिया की ‘हैप्पी मदर्स डे ‘वाली पहली पोस्ट पर लाइक एवं कमेंट्स की जैसे झड़ी ही लग गई और भुरिया सजल नेत्रों से आसमान को देखकर बड़बड़ा रहा था_”अब तो तुझे सिर झुकाना नहीं पड़ेगा। ज्याड़्जा _काखी_बोजी लोगों से कहना मेरे भुरिया की पोस्ट देखो। ईजा आज तेरा भुरिया दिल से रो रहा है।
भुरिया तो कभी पितरों के लिए श्राद्धों में या मातृ _पितृ दिवस पर कोई पोस्ट नहीं लगाता था फिर इतने बड़े परिवर्तन का कारण क्या हो सकता है, यही सब सोच रहे हैं। उन्हें क्या मालूम कि कल रात भुरिया को अजीबोगरीब स्वैंण (सपना) जो आया था।
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