बोल पहाड़ी कुछ तो बोल, अरे मत बोल हल्ला! कुछ तो बोल…
डॉ अजय सेमल्टी
गढ़वाल विश्वविद्यालय
श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड
CC-SA-NC-ND
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बोल पहाडी कुछ तो बोल….
जंगल कट गए, पहाड़ दरक गए,
धारे सूखे, नदियाँ थम गई,
मीठा पानी ज़हर बन गया
तेरा लहू क्यूं यूँ जम गया,
बोल पहाड़ी कुछ तो बोल
अरे मत बोल हल्ला!
कुछ तो बोल…..
बोल पहाडी कुछ तो बोल….
कोदा झंगोरा खाना था
हक हुक़ूक़ को पाना था,
कोदा झंगोरा हवा हो गए,
खेत तो तेरे बंजर हो गए
गांव क्यूँ तेरे वीरान हो गए
बोल पहाड़ी कुछ तो बोल…
काफल घिंघारू आड़ू खुमानी
ढोल दमो मश्कि बाजा बेमानी
डीजे की धुन में गुम गया तू
गांव के रस्ते भूल गया तू
सब तेरे रस्ते क्यूँ दून हो गए
बोल पहाड़ी कुछ तो बोल….
कभी थर्राया, कभी दफ़ना है
कभी विस्थापन को सहना है
मुआवजा दिलासे ही मिलना है
जंगल अरमानों के ख़ाक हो गए
हौसले तेरे क्यूँ पस्त हो गए
बोल पहाड़ी कुछ तो बोल….
अरे मत बोल हल्ला!
कुछ तो बोल…..
बोल पहाडी कुछ तो बोल….
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सर्वाधिकार सुरक्षित।
प्रकाशित…..09/11/2020
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